Short Story of Akbar Birbal| Lehrein Ginna Story In Hindi

Akbar aur Birbal ki kahani in Hindi

एक बार की बात है एक व्यक्ति बादशाह अकबर के दरबार में उनसे नौकरी मांगने की गुहार लेकर पहुंचा।

कुछ देर उसकी बात सुनने और उसकी बुद्धि की परीक्षा लेने के बाद बादशाह ने उसे कर संग्रहकर्ता बना दिया।

उस दरबार में बीरबल भी उपस्थित थे। कुछ देर उसे ध्यान से देखने के बाद उसने कहा कि राजा, यह व्यक्ति बहुत चालाक दिखता है।

यह जल्द ही कुछ बेईमानी करेगा। तब तक कुछ समय बीत चुका था

और तब तक उस व्यक्ति ने कर वसूल करने का कार्य पूरी तरह से अपने हाथ में ले लिया था।

एक दिन, एक या दो व्यक्ति उस अधिकारी के बारे में शिकायत लेकर बादशाह अकबर के पास आए।

शिकायतें मामूली थीं, इसलिए किसी ने उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

उसके बाद उस अधिकारी पर रिश्वत लेने और जनता को परेशान करने के आरोप भी लगने लगे.

इतनी शिकायतें मिलने पर बादशाह ने सोचा कि मैं इसे ऐसी जगह स्थानांतरित कर दूं, जहां इसे बेईमानी करने का मौका न मिले।

इतना सोचकर बादशाह ने फैसला किया कि उन्हें अस्तबल का मुंशी बनाया जाएगा।

तब अकबर ने मन ही मन कहा कि अब वह घोड़े की सीसा पाने के काम में कितनी बेईमानी कर पाएगा।

मुंशी के पद पर पहुंचते ही वह व्यक्ति फिर से घूस लेने लगा।

उन्होंने सीधे घोड़े की रखवाली करने वालों से कहा कि तुम लोग घोड़ों को कम अनाज और पानी खिलाते और पिलाते हो ।

राजा को इस बात का पता चल गया है, इसलिए मुझे सीसा तौलने के लिए भेजा गया है।

अब अगर सीसे का वजन कम हुआ तो मैं सबकी शिकायत बादशाह से करूंगा।

इस तरह उस मुंशी से परेशान होकर लोग उसे एक-एक घोड़े के बदले एक-एक रुपया देने लगे।

Akbar Birbal short story in Hindi

यह बात कुछ समय बाद अकबर के पास भी पहुंची।

उन्होंने यमुना की लहरों को सीधे मुंशी को गिनने का जिम्मा सौंपा।

तभी बादशाह के मन में यह ख्याल आया कि अब यहां कोई बेईमानी नहीं कर पाएगा।

कुछ ही दिनों में वह व्यक्ति जैसे ही यमुना के तट पर पहुँचा तो उसका भी मन वहाँ भी दौड़ा।

वह नाव सवारों को रोकता और कहता कि मैं लहरों को गिन रहा हूं।

इसलिए आप यहां से बाहर नहीं निकल सकते। आपको इस जगह पर दो-तीन दिन रुकना होगा।

रोज ऐसी बातें सुनकर नाविक उसे काम जारी रखने के लिए दस रुपये की रिश्वत देने लगे।

अब वह व्यक्ति यमुना के तट पर भी बहुत बेईमानी कर रहा था।

एक-दो महीने में यह बात बादशाह तक भी पहुंच गई। तब अकबर ने एक लिखित आदेश भेजा, “नाव को मत रोको, जाने दो।”

वह आदमी होशियार था, उसने बादशाह के आदेश का पत्र लिखा दिया था “नावों को रोको, जाने मत दो”।

इस छोटी सी हेराफेरी के बाद उसने बादशाह अकबर का हुक्म वहीं टांग दिया।

अंत में उससे परेशान होकर बादशाह ने उसे नौकरी से निकाल दिया।

तब सम्राट को बीरबल की बात याद आई कि यह आदमी निश्चित रूप से बेईमान होगा।

फिर उन्हें ये लगा कि पहली ही गलती के लिए मुझे उसे कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए थी।

कहानी से सबक:

दुष्ट अपनी दुष्टता को नहीं छोड़ता और बेईमान जहां कहीं जाता है अपनी बेईमानी को नहीं छोड़ता।

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