Sundarvati Putli ki Story in Hindi | सिंहासन बत्तीसी की पन्द्रहवीं कहानी

सिंहासन बत्तीसी की पन्द्रहवीं पुतली सुंदरवती की कहानी

सिंहासन बत्तीसी की पंद्रहवीं पुतली सुंदरवती ने भी राजा भोज को सिंहासन के समीप नहीं आने दिया।।

उन्होंने पूछा कि क्या आप में भी महाराज विक्रमादित्य जैसे पुतली ने राजाभोज से पूछा।

कि क्या आप भी महाराजा विक्रमादित्य की तरह ईमानदार, परोपकारी और प्रजापालक राजा है ?

यह कहकर सुंदरवती पुतली एक किस्सा सुनाने लगी।

उज्जैन की सारी प्रजा राजा विक्रमादित्य के शासन से प्रसन्न थी। राजा की उदारता और दया पर सभी को गर्व था।

महाराजा विक्रमादित्य जैसे दयालु व्यापारी पन्नालाल भी उसी राज्य में मैं रहकर अपना व्यापार करते थे ।

वह बिना किसी लालच के लोगों की हर संभव मदद करते थे।

पन्नालाल का एक पुत्र भी इसी गुण का था। पिता और पुत्र दोनों की भलाई के बारे में पूरा उज्जैन भली भांति जानते थे।

कुछ समय बाद व्यापारियों ने अपने बेटे की शादी के लिए लड़की की तलाश शुरू कर दी।

एक दिन व्यापारी पंनालाल के घर एक बहुत पहुंचे हुए पंडित जी पधारे।

उन्होंने व्यापारी को बताया कि इस संबंध के दूसरे छोर पर एक और व्यापारी रहते हैं जिनकी कन्या बहुत ही गुणी है।,

जो अपनी सुंदर और गुणी बेटी के लिए एक लड़के की तलाश में है।

अगर आपकी मंशा वहाँ शादी करने की हो तो? मैं उससे शादी के बारे में बात कर सकता हूं।

यह सुनकर पन्नालाल ने पंडित को पैसे देकर अमीर राम व्यापारी के पास भेज दिया।

पंडित का प्रस्ताव धनी राम को पसंद आया और वे शादी के लिए राजी हो गए।

दोनों परिवारों की सहमति के बाद शादी का शुभ मुहूर्त भी तय किया गया।

शादी के कुछ दिन पहले ही उज्जैन में तेज बारिश शुरू हो गई थी।

तब पन्नालाल सेठ ने सोचा कि अगर इसी तरह बारिश हुई तो वह दूसरे राज्य में जाकर अपने बेटे की शादी कैसे करेगा?

यदि वहाँ पर विवाह के मुहूर्त पर नहीं पहुंच पाते तो  बदनामी होगी।

Sundarvati Putli ki Story in Hindi

व्यापारी पंनालाल की चिंता उसके मुख पर दिखने लगी तभी पंडित जी ने उससे उसकी चिंता का कारण पूछा।

पंडित ने पंनालाल व्यापारी को समझते हुए कहा की “हमारे राज्य में राजा बहुत ही ।परोपकारी और दयावान है।

निश्चित ही वे आपकी।समस्या का समाधान आसानी से कर देंगे।”

“महाराज के महल में समुद्र को पार करने के बहुत से साधन है आपको महाराज से।सहायता मांगनी चाहिए।।”

सेठ सीधे महाराजा विक्रमादित्य के दरबार में पहुँचे और झिझक कर अपने मन की बात कही।

व्यापारीसमस्याओं को सुनते हुए महाराज ने कहा राजा,की संपत्ति अवश्य ही प्रजा की संपत्ति की तरह ही होती है

आप महल से रथ और घोड़े ले सकते हैं। व्यापारी के जाते ही विक्रमादित्य ने बेटों को बुलाकर कहा कि बारिश बहुत तेज है,

जाओ और व्यापारी और उसके परिवार की रक्षा करो।

फिर व्यापारी अपने बेटे की शादी के लिए पूरे परिवार और रिश्तेदारों के साथ दूसरे राज्य में चले गए ।

रास्ते में वे समुद्र के किनारे पहुँच गए। गहरा पानी देखकर व्यापारी के मन में यह विचार आया कि अब रथ समुद्र को कैसे पार कर पाएगा।

पन्नालाल के मन में ख्याल आते ही रथ समुद्र पर बहुत तेज़ी हवा की तरह दौड़ने लगे।

व्यापारी पूरे परिवार के साथ समय पर विवाह स्थल पर पहुंच गए

और अपने बेटे की शादी धूमधाम से कर अपने शहरों को लौट गए।

नगर पहुँचते ही पन्नालाल सबसे पहले अपने पुत्र-बहू को लेकर महल में पहुँचा और राजा से मिला।

राजा ने उन दोनों को आशीर्वाद देकर पन्नालाल से बच्चों को रथ और घोड़ा देने को कहा।

यह सब मेरी तरफ से उनके लिए शादी का तोहफा है।

यह कहानी सुनाने के बाद सुंदरवती पुतली भी अकस्मात आकाश में उड़ गयी।

और विक्रमादित्य के प्रजा के प्रति प्रेम की कहानी सुनकर राजा भोज महाराज प्रसन्न हो गए।

Moral of tha story कहानी से मिली सीख:

सिंहासन बत्तीसी की चौदहवीं कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है ,की जरूरत के समय हमें अपने आसपास के सभी लोगों की सहायता जरूर करनी चाहिए।