Sinhasan Bsttisi story in Hindi | sunhra kamal

फिर 1 दिन राजा भोज सिंहासन पर बैठने लगे तभी धन्यवाद नाम की पुतली बोली, रुकिए

राजा इस सिंहासन पर विक्रम जैसा पराक्रमी और उदार राजा ही बैठ सकता हैं।

राजा भोज ने पूछा कैसे पराक्रमी और उदार थे राजा विक्रम?

यह तो बताओ पुतली धन्य दाने कहानी शुरू की।

एक बार राजा शिकार करने निकले थे।

घने जंगल में राजा विक्रम रास्ता भूल गए।

ना रास्ता मिला न दिशा सुझाव इतने में राजा को एक जर्जरित बावड़ी दिखाई दीं।

बावड़ी के किनारे हड्डियों के खाली जैसा एक आदमी बैठा था।

राजा विक्रम ने उसके पास जाकर पूछा, भाई तुम कौन हो और यहाँ इस तरह क्यों बैठे हो?

उस आदमी ने जवाब दिया, मैं एक राजकुमार हूँ, मेरा नाम अजीत देव है, एक बार घूमता घूमता मैं इस जंगल में आ पहुंचा था।

प्यास लगी इसलिए इस बावड़ी पर आया। पानी पीकर ज़रा थकान मिटाने बैठा तभी बावड़ी में एक सुनहरा कमल खिल उठा।

बाउंड्री के बिल्कुल किनारे ही वह कमल खिला था।उस कमल को लेने के लिए मैं यहाँ खड़ा हूँ।

मुझे लगा जो हाथ बढ़ाकर अभी मैं सुनहरा कमर तोड़ दूंगा, पर मैं जो हाथ बढ़ाता गया

क्योंकि वो सुनहरा कमल दूर ही दूर की सत्ता गया, मंद मंद मुस्कान बिखेरता गया और अंत में पानी में अदृश्य हो गया।

उस दिन अष्टमी थी बस तब से मैं यहाँ उस सुनहरे कमल को पाने के लिए बैठा हूँ।

दिन बीतते जा रहे हैं और बिना खाये पिए मैं सुनता जा रहा हूँ।दूसरी अष्टमी आई

फिर सुनहरा कमल खिला हरसांव इसमें मैं वह कमल लेने गया पर जो मैं हाथ बढ़ाता गया

क्योंकि हुआ कमल मुझसे दूर ही दूर खिसकता गया और हस्ते हस्ते अंत में अदृश्य हो गया।

मैने प्रतिज्ञा की है कि सुनहरा कमल लेकर ही वापस जाऊंगा।अब यदि मुझे कंबल नहीं मिलेगा तो मेरे प्राण निकल जाएंगे।

राजा विक्रम ने कहा, अपने हाथ में सुनहरा कमल आया ही सब जो।

मिलेगा तो मेरे प्राण निकल जाएंगे। राजा विक्रम ने कहा अपने हाथ में सुनहरा कमल आया ही समझो।

आप बस अष्टमी आए और कमल खिले इतनी ही देर है। फिर अष्टमी आई फिर सुनहरा कमल खिला।

राजा विक्रम ने निश्चय किया, जमता है या कोई देवी कमल है, इसके रहस्य का तो पता लगाना ही चाहिए।

राजा ने मन ही मन हरसिद्धि माता की वंदना की।फिर बेताल का स्मरण किया और बावड़ी में छलांग लगाई की तलहटी में पहुंचते हैं।

इस दरवाजा दिखाई दिया राजा ने धक्का दिया, दरवाजा खुल गया। दरवाजा खुलते ही सामने एक माहौल दिखाई दिया।

माल के चारों ओर बगीचा था, बगीचे में तरह तरह के वृक्ष थे वृक्षों पर, मधुर आवाज में।चाहे जाते हुए पक्षी थे,

सुगंध के फौव्वारे, उड़ते हुए रंग बिरंगे पुष्प थे, बगीचे में खेलती, खिलखिलाकर हंसती कन्याये थीं

, बगीचे के समीप विशाल सरोवर था, उसमें बस सुनहरा कमल था। राजा ने वहाँ जाकर सुनहरे कमल को लेने के लिए हाथ बढ़ाया।

तब ये कन्या ज़ोर से चिल्लाई।जिल आहट सुनकर पहरेदार दौड़ते हुए आए। राजा ने पहरेदारों को मारकर भगा दिया।

पहरेदारों ने जाकर चामुंडा माता से शिकायत की। चामुंडा माता ने विकराल रूप धारण किया।

हाथ में खड्ग गया और राजा विक्रम के पास आ पहुंची। उन्होंने राजा से ऊंची आवाज में पूछा कौन हो तुम यहाँ क्यों आए हो?

राजा विक्रम ने चामुंडा माता से कहा प्रणाम माता मैं राजा विक्रम हूँ यह सुनते ही चामुंडा माता का क्रोध शांत हो गया।

उन्होंने कहा, अरे विक्रम तुम तुम्हारी तो मैं बहुत दिनों से राह देख रही थी।

राजा विक्रम आश्चर्यचकित होकर चामुंडा माता की ओर देखते ही रहे।

चामुंडा माता ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा।

एक बार हम सब पूर्णिमा की रात को सरोवर के किनारे गरबा नृत्य करने गई थी,

वहाँ मेरी नजर सरोवर के किनारे पड़े एक स्त्री के शव पर पड़ी।

उसके आसपास उसकी नन्ही सी बेटी बैठी थी। मुझे देखते ही लड़की ने अपने दोनों हाथ बढ़ाए।

तुरंत मैने उसे उठा लिया।उसे लेकर हम कैलाश के लड़की को हमने भूमिया बाबा की खोज में रख दिया

और उनसे पूछना है, इस लड़की का मुझे क्या करना चाहिए?उमरिया।

माँ ने जवाब दिया इस लड़की को तुम अपने स्थान पर।

ले जाओ या 16 वर्ष की होगी तब राजा विक्रम तुम्हारे यहाँ आएँगे।

उनके साथ तुम इस कन्या का विवाह कर देना। जब से मेरी दत्तक पुत्री को सोलहवां साल लगा तब से मैं तुम्हारे आने का इंतजार कर रही थी।

मेरी कन्या को स्वीकार करोगे ना?राजा विक्रम दोनों हाथ जोड़कर बोले, आपकी आज्ञा का मुझसे कैसे उल्लंघन हो सकता है?

तुरंत उनका तात्कालिक विवाह मुहूर्त निकलवाया गया।एक हाथी को सजाया गया।

देवी ने उसके ऊपर बहुमूल्य रेशमी वस्त्र और संख्या आभूषण रखे।फिर राजा को कभी ना मुर्झानेवाला सुनहरा दिव्य कमल दिया।

इस तरह धूमधाम से राजा विक्रम की विदाई हुई।देख आज लड़के वाले तेरी छोटी बहन आरती को देखते हैं,

वैसे तो तू बड़ी बहन है।कन्या दहेज और हाथी के साथ राजा विक्रम बावड़ी से बाहर आए।

उन्होंने बाहर इंतजार कर रहे अजीत देव के हाथ में सुनहरा देवी कमल रख दिया।

अजित देव का चेहरा उदास हो गया। राजा ने उसे उदास होने का कारण पूछा।

अजित देव ने जवाब दिया, सुनहरे कमल को तो सबसे पहले मैने ही देखा था।

उसी समय में आप की तरह बावड़ी में कूद पड़ा होता तो?राजा विक्रम हंसते हुए बोले तो क्या यह कन्या और दहेज तुम्हें मिलता?

यही ना तो यह कन्या और दहेज तुम्हारा बस अजीत देव स्तब्ध रह गया।

राजा और कन्या को बंधन करते हुए बोला नहीं महाराज, मैं सुनहरे कमल के सिवा कुछ भी स्वीकार नहीं कर सकता।

लेकिन जीस विचार के कारण।

लेकिन जीस विचार के कारण मेरा चेहरा छठ भर के लिए उदास हो गया था। उसके बारे में मैं आपको बताता हूँ। राजकुमार अजीत देव ने बहुत इनकार किया। फिर भी राजा विक्रम ने आग्रहपूर्वक हाथी कन्या तथा सारा दहेज अजित देव को दे दिया। ऐसे थे राजा विक्रम कहती हुई धनिया पत्ती आकाश में उड़ गई।
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