Thakur Saahab Kahani in Hindi | Munshi Premchand ki Hindi kahani

Thakur Saahab Ki Kahani Munshi Premchand

ठाकुर साहब ऊपर ऊपर सो रहे थे।

वीरू और प्रकाश नीचे सो रहे थे दोनों स्त्रियाँ कमरे में  सो रही थी।

प्रकाश जाग रहा था उसको बेचैनी के कारण नींद नहीं आ रही थी।

उसकी चाबी का गुच्छा पड़ा था।प्रकाश ने उसे ही तुरंत ही चाबी का गुच्छा उठा लिया ।

चुपचाप उन्होंने अलमारी का दरवाजा बिना आवाज किये खोला निकालना उसमे से गहनों का संदूक निकाला।

और चुपचाप उसको हाथ में लेकर चल दिए और ठाकुर साहब के घर की ओर चल दिया।

कई महीनों पहले की बात है कि प्रकाश एक दिन औरठाकुर साहब के यह गया

जब उसके पैर कापते थे परन्तु आज ओर में कांटा नहीं लगा था आज तो काँटा दूर करने का शुकुन था ।

आज कदम पीछे हटने की वजह आगे आगे बढ़ते जा रहे थे । और प्रकाश ठाकुर साहब के घर पहुँच गए, उसने से कमरा खोला

और अंदर जाकर ठाकुर साहब की खाट के नीचे गहनों से भरा हुआ संदूक रख दिया।

आया और दरवाजा बंद करके अपने घर को लौट कर आ गया ।जैसे तैसे रात कटी और प्रातः सुबह हो गयी ।

प्रकाश उनके यहां संध्या में पढ़ने जाता था परन्तु आज तो सुबह सुबह ही पहुंच गया।

Munshi Premchand ki kahani

प्रकाश देखना चाहता था ठाकुर साहब के यह चल क्या रहा है।

कल आपके यहाँ की दावत बड़ी मुबारक थी।

जितने भी गहने हमारे घर से चोरी हुए थे सब के सब ऐसे ही अवस्था में मिल गए।

आपके यह की दावत बहुत भाग्यवान थी हमारे लिए अब दावत तो हमारे घर होगी गहने मिलने की ख़ुशी में

प्रकाश ने कहा की ऐसे निकम्मो पर भरोसा तो नहीं होता है।

परन्तु सब कुछ अपने आँखों से देखा है तो यकीन करना ही पड़ेगा।

ये सब देख कर प्रकाश तनिक भी न चौंका और अपने घर आकर अपनी पत्नी चंपा को बुलाया।

और ठाकुर साहब के गहने मिलने की बात बताई।

उसकी पत्नी मानो इतनी खुश हुई की न जाने भगवान ने उसकी दिल की इच्छा पूरी कर दी हो।

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