Nakli Tota Ki Kahani-नकली तोते की कहानी

Panchtantra ki kahani: नकली तोते की कहानी

एक बार की बात है, घने जंगल में एक विशाल बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर कई तोते रहते थे।

सब इधर-उधर की बातें कर रहे थे। इनमें मिठू नाम का तोता भी था। वह बहुत कम बोलता था और चुप रहना पसंद करता था ।

उसकी इस आदत का हर कोई मजाक उड़ाता था, लेकिन उन्हें कभी किसी का बुरा नहीं लगा।

एक बार दो तोते आपस में आम के फल के बारे में बात कर रहे थे एक ने बोला कि मुझे आम बहुत पसंद है

मैंने इसे पूरे दिन बड़े चाव से खाया।” इस पर दूसरे तोते ने जवाब दिया – “मुझे भी एक दिन आम का फल मिला था

फिर एक दिन रात में सरपंच की पत्नी का हार चोरी हो गया।

सरपंच  की पत्नी रोती हुई आई और सारी बात बताई। सरपंचकी पत्नी ने कहा – “किसी ने मेरा हार चुरा लिया है।

और वह हमारे झुंड में से एक है।” यह सुनकर सरपंच  ने तुरंत बैठक बुलाई।

सभी तोते तुरंत सभा के लिए एकत्रित हो गए सरपंच ने कहा – “मेरी पत्नी का हार चोरी हो गया है

और मेरी पत्नी ने चोर को हार चुराकर भागते हुए देख लिया था उसने एक छोटे कपड़े से अपना चेहरा ढक रखा था।

और वो चोर यही कहीं का ही है ये सुनकर सब चौक गए । उसकी चोंच लाल थी।

अब सारे झुण्ड की निगाह मिट्ठू तोते और हीरू नाम के एक और तोते पर थी,

क्योंकि झुण्ड में केवल इन दोनों की ही लाल चोंच थी।

यह सुनकर सभी चोर का पता लगाने के लिए सरपंच  से बात करने लगे।

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लेकिन  सरपंच  को लगा कि ये दोनों मेरे अपने हैं। मैं उनसे कैसे पूछ सकता हूं कि आप चोर हैं?

इसलिए, सरपंच  ने इसका पता लगाने के लिए एक कौवे की मदद ली।

चोर को पकड़ने के लिए कौवे को कहा उसने दोनों लाल चोंच बाले तोते को बुलाया ।

कौवे ने दोनों तोतों से पूछा कि चोरी के समय तुम दोनों कहाँ थे? तुरंत ही हीरु तोता चिल्ला कर बोला की में बहुत थका हुआ था उस समय ।

तो खाना खाकर मैं उस रात जल्दी सो गया।” वहीं मिट्टू तोता ने बहुत धीमी आवाज में जवाब दिया।

उसने कहा- ”मैं उस रात सो रहा था।” यह सुनकर कौवे ने फिर पूछा- ”क्या क्या आप दोनों अपनी बात साबित करने के लिए कर सकते हैं?”

इस पर हीरू तोता ने फिर ऊँची आवाज़ में कहा- “मैं उस रात सो गया था

और सभी को पता है मिठ्ठू चुपचाप है तो मिट्टू ने यह चोरी कीहै ।

इसलिए वह इतनी शांति से खड़ा है?” मिठू तोता चुपचाप खड़ा रहा।

सभा में उपस्थित सभी तोते चुपचाप यह सब देख रहे थे।

मीठे तोते ने फिर धीमी आवाज में कहा – “मैंने यह चोरी नहीं की है।”

यह सुनकर कौवा मुस्कुराया और कहा कि चोर मिल गया है।

सरपंच  सहित सभी लोग कौवे को आश्चर्य से देखने लगे।

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कौवे ने सबको बोला की चोर हीरु तोता ही है कौवे की बात सुनकर सरपंच बोला की तुम ये कैसे बोल सकते हो?

कौआ जोर से हँसने लगा और तोता चिल्ला कर अपने बोले हुए झूठ को सच बनाने की कोशिश करता है।

और मिठ्ठू तोता को पता है की में सच्चा हूँ तो, वह आराम से बोल रहा था।”

सरपंच ने कहा की तुम झूठे तोते हो और तुम सच्चे तोते नहीं हो।

सभी लोग उसे झूठा तोता कहकर पुकारने लगे।

लेकिन मीठा तोता फिर भी चुप रहा। यह सब चलता रहा।

कौवे ने सबसे बोला की हीरु तोता तो बहुत अधिक बोलता है और उसको सही गलत की पहचान नहीं है ।

हम में से किसी को भी उसकी बातों पर विश्वास नहीं है और उसके बाद हीरु तोते ने भी अपना जुर्म मान लिया।

यह सुनकर सभी तोते गंभीर देने की बात करने लगे।

हीरू तोते को सजा, लेकिन मिट्टू तोते ने कहा – ” सरपंच जी, हीरू तोते ने अपनी गलती स्वीकार कर ली है।

उसने सबके सामने माफी भी मांगी है। यह पहली बार है जब उसने यह गलती की है।

इसलिए उसे माफ किया जा सकता है।” यह सुनकर सरपंच ने हीरू तोते को क्षमा कर दिया।

कहानी से सबक

कभी-कभी हम बहुत ज्यादा बोलने से अपनी अहमियत खो देते हैं। इसलिए जरूरत पड़ने पर ही बोलना चाहिए।

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