Nadi Pari ki kahani | lakadhara

Jadui Pari stroy in Hindi : Emnadar Lakadhara

एक बार की बात है की एक गांव में एक गरीब लकड़हारा रहता था ये लकड़हारा बहुत ही गरीब था।

परन्तु बहुत ईमानदार था लकड़हारा पुरे दिन मेहनत करता परन्तु फिर भी अपने बच्चों को पेट भर खाना भी नहीं खिला पाता था।

इसी वजह से लकड़हारा और उसकी पत्नी बहुत चिंतित रहने लगे।

लेकिन बहुत काम करने पर भी इस का कोई हल नहीं निकला तो।

लकड़हारा एक दिन लकड़ी काटने के लिए एक नदी के पास जंगल में चला गया वह जाकर देखा की उस जंगल में बहुत से पेड़ थे।

उसने सोचा अब तो बहुत मज़े आ गए अब तो खूब मेहनत से लकड़ी काट कर शहर में बेचूंगा।

और अपने परिवार को साड़ी सुख और सुविधा दे पाउँगा।
ऐसा सोचकर लकड़हारा जंगल में नदी के समीप एक पेड़ पर चढ़ गया।
और उस लकड़हारे ने लकड़ी काटना शुरू किया उसने थोड़ी सी लकड़ी काटी थी।
जैसे ही उसने एक डाली को काटने के लिए अपनी कुल्हाड़ी उठायी और एक चोट उस डाली पर मारी तो उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गयी।

अब तो लकड़हारा बुरी तरह से घबरा गया और जैसे तैसे पेड़ से नीचे उतरा और बहुत तेज तेज आवाज में नदी के किनारे रोने लगा।
उसकी रोने की आवाज सुनकर एक जादुई और दयालु परी वहा प्रकट हुई।

और लकड़हारे से उसके रोने का कारण पूछने लगी।
परी की बात सुनने के बाद लकड़ हारा हाथ जोड़ कर परी से कहने लगा की मेरी कुल्हाड़ी इस नदी में गिर गयी है।

और अब मेरे पास कोई दूसरा चारा नहीं है जिससे में अपना घर चला सकू।

परी ने कहा बस इतनी सी बात में अभी तुम्हारी कुल्हाड़ी इस नदी से निकाल देती हूँ।

जादुई परइ ने नदी में डुबकी लगाई और एक सोने की कुल्हाड़ी निकाली और उस लकड़हारे को देने लगी।

Moral story for kids

तो लकड़हारे ने उस कुल्हाड़ी को लेने से साफ इंकार कर दिया।

और कहा की ये मेरी कुल्हाड़ी परी ने कहा की ये तो सोने की कुल्हाड़ी है इससे तुम्हारे सारे काम हो सकते है।

लकड़हारे ने कहा नहीं में ये नहीं ले सकता ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है

उसके कहने के बाद पारी ने तुम चिंता मत करो में फिर से तुम्हारी डुबकी लगती हूँ और तुम्हारी कुल्हाड़ी निकल देती हूँ।

परी ने दूसरी बार डुबकी लगाई और उस परी ने इस बार चाँदी की बनी कुल्हाड़ी निकाली।

परी ने उस लकड़हारे से खा ये लो ये त्युंहारी कुल्हाड़ी है की नहीं।

तो लकड़हारे ने कहा नहीं परिजात ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।

में इसे स्वीकार नहीं कर सकता मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे से बनी थी मुझे मेरी लौहे की कुल्हाड़ी थी मुझे वही चाहिए।

परी ने अंतिम बार डुबकी लगाई और इस बार उसने लकड़हारे की लौहे से बनी कुल्हाड़ी निकाली।

और लकड़हारे से कहा की क्या ये तुम्हारी कुल्हाड़ी है।

अपनी कुल्हाड़ी को देख कर लकड़हारा खुसी से चिल्लाने लगता है।

हां ये ही मेरी कुल्हाड़ी है और झटपट उसने परी से अपनी कुल्हाड़ी ले ली।

परी ने लकड़हारे की ईमानदारी को देख कर खुश होकर तीनों कुल्हाड़ी उस लकड़हारे को दे दी ।

और परी ने अपनी छड़ी घुमाई और गायब हो गयी।

Moral of the storyकहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है।कि हमें अपने जीवन के सभी पड़ाव परईमानदारी से काम करना चाहिए।