Kirtimati Putli Hindi Story | Kirtimati Putli Ki Story in Hindi | सिंहासन बत्तीसी की  तेरहवीं कहानी

Kirtimati Putli Ki Story in Hindi

Kirtimati Putli Hindi Story: सिंहासन बत्तीसी की बारहवीं  पुतली को सुनते ही राजा भोज ने  सिंहासन पर जाने वाले थे की .

सिंहासन बत्तीसी की  तेरहवीं पुतली तुरंत प्रकट हो गयी  तेरहवीं  पुतली का नाम कीर्तिमती था।

उन्होंने राजा भोज को यह पूछकर रोक दिया कि क्या आपमें राजा विक्रमादित्य में मौजूद सभी गुण हैं?

राजा भोज ने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि हे देवी! क्या आप मुझे उस विशेषता के बारे में बता सकते हैं?

तब कीर्तिमती महाराजा विक्रमादित्य की कथा सुनाने लगी।

बहुत समय पहले की बात है कि राजा विक्रमादित्य ने महान विद्वानों को परामर्श के लिए अपने दरबार में बुलाया

विक्रमादित्य ने उसे बहुत अधिक धन के साथ हीरे और जवाहरात दे दिए ।

राजा विक्रम के शाही दरबार में उपस्थित शाही विद्वानों ने एक साथ बोला की आप इस धरती पर महादानी हो आप जैसा कोई नहीं ।

वहाँ पर महाराज ने एक ब्राह्मण को देखा जो चुपचाप बैठा था।

राजा ने ब्राह्मण से उसके शांत होने का कारण पूछा तो ब्राह्मण ने कहा कि यदि राजा उसे अभय दान देगा तो वह कुछ कहने की हिम्मत करेगा।

तब राजा ने उससे एक वचन दिया। इसके बाद ब्राह्मण ने कहा कि साहब, बेशक आप बहुत बड़े दाता हैं,

लेकिन आप सबसे बड़े दाता नहीं हैं।

ब्राह्मण की बात सुनकर सभी दरबारियों ने ब्राह्मण की ओर देखा और राजा ने ब्राह्मण की निडरता की प्रशंसा की।

इसके बाद विक्रमादित्य ने पूछा कि फिर इस धरती पर सबसे बड़ा दाता कौन है?

 

Kirtimati Putli Hindi Story – सिंहासन बत्तीसी की  तेरहवीं कहानी

तब ब्राह्मण ने कहा कि समुद्र के उस पार एक बहुत समृद्ध राज्य है, जिसका राजा किरकिध्वज सबसे बड़ा दाता है।

जब तक वह प्रतिदिन एक लाख सोने के सिक्के दान नहीं करता, तब तक वह कुछ भी स्वीकार नहीं करता।

मैंने भी कुछ दिन उनके दरबार में जाकर चंदा लिया था।

राजाविक्रमादित्य ने उसे बहुत अधिक धन के साथ हीरे और जवाहरात दे कर विदाई की

और बेताल की सहायता से स्वयं समुद्र के पार राजा किरकीध्वज के राज्य में पहुँच गए ।

वह सीधे किरकिध्वज के दरबार में गए और उससे अपने लिए नौकरी मांगी।

किरकित्तध्वज ने महाराज से उनका परिचय पूछा, विक्रमादित्य ने उत्तर दिया।

कि वह एक सामान्य नागरिक हैं और नौकरी की तलाश में हैं।

तब किरकिध्वज ने उनसे पूछा कि आप कौन-सा काम कर सकते हैं।

राजा विक्रम ने बोला जो कार्य को नहीं करना चाहता मो वही कार्य करूंगा ।

महाराज की यह बात सुनकर राजा किरकित्तध्वज ने उन्हें अंगरक्षक नियुक्त कर दिया।

महाराज ने देखा कि राजा किरकित्तध्वज वास्तव में प्रतिदिन एक लाख सोने के सिक्के दान करते हैं,

लेकिन विक्रमादित्य को यह जानने की लालसा थी कि राजा किरकित्तध्वज इतने सोने के सिक्के कहाँ से लाते हैं।

महाराजा विक्रमादित्य ने देखा था कि राजा किरकित्तध्वज शाम को कहीं जाते हैं

और लौटते समय एक थैले में सोने के सिक्के लाते हैं।

आखिर विक्रमादित्य एक दिन किरकित्तध्वज का पीछा करते करते उन्हें साथ जा पहुंचे।

ताकि पता लगाया जा सके कि किरकित्तध्वज को सोने के सिक्कों से भरा थैला कहां से मिलता है।

Kirtimati Putli Story Hindi Mein – सिंहासन बत्तीसी की  तेरहवीं कहानी

विक्रमादित्य ने देखा कि किरकित्तध्वज एक मंदिर में जाते है

और स्नान करने के बाद, वहां मौजूद देवी की मूर्ति के सामने एक बड़ी कड़ाही में तेल डालते है

और उसमें कूद जाते है । यह देखकर महाराज चौंक गए। विक्रमादित्य आगे बढ़ने वाला है,

लेकिन यह देखना बंद कर देता है कि दो राक्षस वहां आते हैं और किरकिध्वज के शरीर को खा जाते हैं।

जब राक्षस चले जाते हैं, तो देवी प्रकट होती हैं और अमृत की एक बूंद के साथ किरकित्तध्वज को पुनर्जीवित करती हैं।

किरकित्तध्वज के जीवित होने के बाद देवी ने किरकित्तध्वज को एक लाख सोने के सिक्के दिए।

उसके बाद राजा किरकित्तध्वज वहां से उन मुद्राओं और पत्तों को पाकर प्रसन्न होते हैं।

राजा किरकित्तध्वज के जाने के बाद महाराजा विक्रमादित्य ने भी स्नान किया

और वही प्रक्रिया दोहराई जो राजा किरकित्तध्वज ने की थी।

इसके बाद देवी प्रकट हुईं और महाराज विक्रमादित्य को जीवित कर दिया और उन्हें सोने के सिक्के देना चाहते थे,

देवी से थैला लेने के लिए राजा विक्रमादित्य ने मना कर दिया

उन्होंने कहा किओ मुझे थैला नहीं आपका आशीर्वाद ही चाहिए ।

Kirtimati Putli Ki Story in Hindi

इस तरह विक्रमादित्य ने इस क्रिया को लगातार 7 बार दोहराया और सातवीं बार देवी उनसे बहुत प्रसन्न हुईं

और उनसे वरदान मांगने को कहा।

तब महाराज ने देवी से वह थैला मांगा जिसमें से वे एक लाख सोने के सिक्के निकाल कर किरकिध्वज को देते थे।

देवी के द्वारा थैला राजा को देते ही वो मंदिर के साथ अंतर्ध्यान हो गयी ।

दूसरे दिन जब राजा किरकित्तध्वज वहाँ जाते हैं तो उन्हें वहाँ केवल मैदान दिखाई देता है।

मंदिर न मिलने से किरकिध्वज दुखी हो जाते हैं ।

वह सोचने लगते है कि प्रतिदिन एक लाख सोने के सिक्के देने का उसका नियम अब टूट जाएगा।

यह सोचकर वह अपने महल में लौट आते है और उदास होकर बैठ जाते हैं ।

तभी विक्रमादित्य वहां पहुंचते है और किरकिध्वज से  उनके दुःख का कारण पूछते है ।

तब राजा किरकित्तध्वज उन्हें सारी बात बताते हैं।

 

Kirtimati Putli Kahani Hindi Mein – सिंहासन बत्तीसी की  तेरहवीं कहानी

राजा किरकित्तध्वज की बात सुनकर महाराजा विक्रमादित्य अपने हाथों में वह जादू की थैली रखते हैं

जो उन्हें देवी से प्राप्त हुई थी।

राजा किरकित्तध्वज को थैला खोजने के बाद अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ

और उन्होंने विक्रमादित्य से अपनी सच्चाई जानने के लिए कहा और पूछा कि उन्हें देवी का यह थैला कैसे मिला।

तब महाराज विक्रमादित्य ने राजा किरकित्तध्वज को सारी बात बताई।

जब राजा किरकित्तध्वज को विक्रमादित्य की वास्तविकता का पता चला तो उन्होंने विक्रमादित्य को गले लगा लिया।

और कहा कि आप इस धरती के सबसे बड़े दाता हैं।

महाराजा विक्रमादित्य राजा किर्कीध्वज से विदा लेकर अपने राज्य लौट आए।

राजा भोज सुनकर  सहम गए और तेरहवीं पुतली भी कहानी सुनाने बाद आकाश तरफ चली गयी

Moral of the story – कहानी से  सीख:

बच्चों, इस कहानी से एक ही सबक सीखा जा सकता है कि आप जितने संयमी और दयालु होंगे, दुनिया में उतने ही प्रसिद्ध होंगे।