Kashi Banaras Ki Khubsurati | Kashi : Ek Prem Kahani | काशी : एक प्रेम कहानी | Author Preeti Tiwari

काशी बनारस की खूबसूरती।

बनारस शहर। कहने को तो ये महादेव की नगरी है।पर यहाँ मोहब्बत जैसे हवाओं में बहती है।हर किसी का दिल एकदम खरे सोने सा है।बनारस अपने घाटों के लिए महादेव की भक्ति के लिए और माँ आर्थिक में प्रसिद्ध है।मेरी नई कहानी भी यहीं से शुरू होगी और खत्म भी इसी बनारस के घाट पर होगी।

बना शेयर 80 घाट सुबह का वक्त

ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है।शिव ही सुंदर है,

जागो उठकर देखो जीवन ज्योत उजागर है।

बनारस अस्सीघाट पर बने महादेव का मंदिर जिसमें सुबह की शुरुआत इस भक्ति गीत से होती थी और सिर्फ एक ही आवाज़ इस बनास को जैसे आकर खुद जगा दी थी।और वो भी वो थी काशी।जी हैं काशी बनारस शहर में रहने वाले एक सदन से लड़की।जो महादेव की परम भक्त भी है और साथ में एक शिक्षिका भी।ब्रैकिट अरे ये तो काशी की आवाज़ है मतलब सुबह के 4:00 बज गए।पुजारी जी भी उठते हुए बोले।बैट क्लोज़।सुबह 4:00 बजे ही महादेव के मंदिर आती थी।खुद इस मंदिर को साफ करती और आरती करती थी।उसकी आरती के बाद से ही बनारस के लोगों की भी सुबह होती थी।

सत्यम, शिवम, सुन्दरं, सत्यम, शिवम, सुन्दरं, सत्यम, शिवम, सुन्दरं, सत्यम, शिवम, सुन्दरं, सुंदरम्।सत्यम शिवम सुन्दरं ईश्वर सत्य है सुंदरम्, सत्यं शिवं है सुंदरम्, 27 सुंदर है शिविंदर है सत्यम शिवम सुन्दरं सत्यम शिवम सुंदरम् से।शिवम सुन्दरम।

काशी आरती कर सूबे की तरफ आरती की थाल को नी।सूरज भी अब पूरी चमक के साथ निकल आया था और लोगों की तादाद भी बहुत बढ़ रही थी। वो सब को अर्जी देकर माँ देवी के मंदिर से बाहर आ गई।

काशी आर्थिक और मंदिर से बाहर निकली थी ही सामने से यादवी मठ के महंत मिल गए।

वो अपने दोनों हाथों को जोड़कर सिस्टर के साथ प्रणाम करते हुए बोली पर नाम महेंद्र जी?

मेहनती जी ने उसे आशीर्वाद देते हुए पूछा।अरे काशी बेटियां, प्रणाम कैसी हो बिटिया?

काशी ने मुस्कुराकर।के सब झुकाकर बोला।जी अच्छे हम महेंद्र जी।

आरती हो गयी क्या बिटिया?

जी हो गई। हम बस घर जा रहे थे स्कूल के लिए देर हो रही है।

अरे हाँ, जाओ बेटियां जाओ, खुश रहो।मैं तुझे आशीर्वाद देखें आगे बढ़ गए। काशी भी घर से होते हुए बनारस की गलियों में चली गई।

बनारस की गलियां तक जरूर होती है, पर चहल पहल भी बहुत होती है। यह आपको सन्नाटा कभी मिल ही नहीं सकता। कभी कभी तो रात भी यहाँ कि भोलेनाथ के नामों से गुंजायमान रहती है।काशी एक दुकान पर रुकी। दुकान का नाम था शर्मा मिष्ठान भंडार।

उसमें दुकान पर बैठे एक मोटे से बूढ़े से आदमी सका का परिणाम कचौड़ी जलेबी बांध दीजिए जल्दी से।

अरे, काशी बेटियां आ गई तो अरे तुम्हारी कचौरी जलेबी हम पार्क के रखे है, बस अभी देखो आ भी गयी।ये थे दुकान के मालिक शर्मा जी ये बोल शर्मा का करने।कचौड़ी जलेबी की थैली से पकड़ा दिया।

उसने का को पैसे देते हुए पूछा शुक्रिया कहा चलते हैं जय।आर आय ना? स्कूल की छुट्टी तो नहीं किया?

तभी शर्मा का के पीछे से जय जो की 8 साल का था। उसने कहा नहीं दीदी हम तो कब के तैयार हो गयी? काशी ने उसे देख मुस्कुरा थैली लेकर घर पर आ गई।

काशी घर आकर आंगन में जूतियां उतारकर सामने बने तुलसी को हाथ जोड़कर वहाँ मरने से लाया। वह फूल रख जैसे ही वो घर के अंदर गई तो उसके बाबा आनंद त्रिपाठी जी बैठे हुए।बने बिना किसी तरह देखे कहाँ आ गई आप काशी?

काशी कचौरी, जलेबी की थैली मेज पर रखते हुए बोली आपको कैसे पता चल जाता है कि ये हम है?

उन्होंने अखबार मोड़ के सामने रखे टेबल पर रखते हुए कहा।आपकी पाई की आवाज से जो हम आपको बचपन से पहनाते आए हैं उसकी आवाज़ से।काशी ने मेज पर नाश्ता लगाया और अपने बाबा को भी नाश्ते के लिए बुला लिया।उन्हें नाश्ता करा खुद नाश्ता कर वो स्कूल के लिए निकल गई। उसके बाबा आश्रम चले गए।आनंद जी के दोस्त राजेंद्र प्रताप सिसौदिया जी का आश्रम था, जिसे वो दुख देखते रहे। खुद देखते थे।उसका कार्यभार वही देखा करते थे।उनके दोस्त इंदौर के सही कारणों में से एक थे। वही अपना कारोबार करते थे। साल में एक बार आकर वो सब से मिलते थे।काशी। उनके लिए वे उनकी बेटी से बढ़कर थी।उनके परिणाम में वो अकेले थे।इसलिए अपना सारा प्यार काशी पर ही लौट आया करते थे।

काशी जब स्कूल पहुंची तब स्कूल की घंटी बजने में बस कुछ ही मिनट बाकी थी। वो जल्दी से जाकर प्रिंसिपल रूम में टाइम भरी और प्रिंसिपल सर को शुभ प्रभात बोल के बाहर आ गई।घंटे लगते हैं। सारे बच्चे प्रार्थना के लिए आगे ग्राउंड में लाइन लगाकर खड़े हो गए। स्कूल के सारे टीचर्स आकर अपनी अपनी क्लास के लाइन के सामने खड़े हो गए।प्रार्थना शुरू हुई तो सारे बच्चे एक साथ मिलके प्रार्थना करने लगे।स्कूल के सैंपल खत्म होने के बाद सारे बच्चे अपनी अपनी क्लास में वापस चले गए। काशी स्टाफ रूम में आकर वहाँ से अपना सामान निकालने लगी। तभी पीछे से आके शालिनी उसे गुड मॉर्निंग विश किया।

वो उसे पूछे मुड़ के देखते हुए बोली हो तो आ गयी आप।

यार क्या करूँ अब तेरी तरह मैंने बनारस को उठाने का ठेका तोड़ लिया नहीं है तो सोचती हूँ तेरे हिस्से का भी मैं ही सो लेती हूँ।इसमें और इसमें मुझे लेट हो जाता है। साली ने अपनी अलमारी से अटेंडेंस रजिस्टर निकलते हुए कहा और दिनों हसदी।

चलो अच्छा अब आओ जल्दी क्लास में।ये बोल काशी अपनी क्लास में चली गयी।

 

आनंद जी आश्रम आ गए थे। ये आश्रम बहुत बड़ा था। इसमें विधवा स्त्रियों के लिए वृद्धों के लिए अनाथ बच्चों के रहने का निजाम था। यहाँ की जितनी भी विश्वस्तरीय थी, वो कुछ न कुछ काम करती थी।उन्ही से खुद के लिए कम आती थी वृद्ध महिलाएं पुरुषों की सेवा भी यहाँ होती थी।अनाथ बच्चों को पढ़ाया जाता था। आनंद जी रिटायर हो गए थे। अपनी टीचर की जॉब से तो उन्होंने यहाँ आकर इन सबको अपना वक्त देना ज्यादा अच्छा समझा।वो अपना पूरा दिन इसी आश्रम में बिता देते थे। उनकी जिंदगी में काशी के अलावा कोई था नहीं।काशी की माँ बचपन में ही चली फंसी थी।इससे उसकी परवरिश खुद उन्होंने अकेले किया।

आयरन जी को काम करते हुए दोपहर को गई थी, उन्होंने खाना भी नहीं खाया था। तभी उनके मैनेजर दुबे जी ने बोला सर खाना लगा दो पैर हो गई है।

उन्होंने कहा कोई फाइल देखते हुए कहा नहीं दुबेजी अभी नहीं।

अभी क्यों नहीं अभी ही खाएंगे आप और बाबा और हमारे साथ खाएंगे?ये आवाज़ सुन दोनों ने देखा तो काशी अंदर ही चली आ रही थी। खाने का बॉक्स लिए।

वो अंदर आके दुबे जी को प्रणाम करते हुए बोलीं चलिए जल्दी उठी है।ये कहते हुए उसने खाने का टिफिन मेज पर रख दिया।

उसने टिफिन खोलते हुए कहा और दुबे चाचा जी आपने खाना खाया या नहीं?आनंद जी ने फाइल रखते हुए उससे पूछा प्रकाशी अब यहाँ क्या कर रही है?

उसने कहा, एक प्लेट में निकलते हुए कहा।आप को खाना खिलाने आए हैं, चलिए अब आप भी आज ये चाचा जी?

अरे नहीं बिटिया, हम लेकर आए हैं।आपको हम भी चलते हैं ये बोल दूंगी, मैं तो चली गयी।काशी जी अपने बाबा के साथ खाना खाने लगी।दोनों ने साथ में खाना खाया और फिर काशी आश्रम के बच्चों को पढ़ाने चली गई। वो अपना वक्त इन बच्चों को पढ़ाने में वहाँ की विधवा स्त्रियों को मिट्टी की मूर्ति बनाना सिखाने में रात को जाने से पहले सारे वृद्धों को कहानी सुनाने में दे दी थी।काशी की जिंदगी में उतना ही था

काशी दोपहर से रात तक काम करती रही और रात को सब कुछ एक बार खुद देख के सामने अपने पापा के साथ घर के लिए निकल गई।

रात का वह कहा जाता है कि राजस्थान एक खूबसूरत राज्य, इसकी शान यहाँ की सभ्यता यहाँ का रहन सहन और खाना है।फिर भी इस शहर में कोई था जो थोड़ा अजीब लग अलग अलग।अकेला था।इस शहर का मशहूर राजपूत एक बैचलर व्यापारी, पूरा राजस्थान जिसके एक शब्द पर हिल जाती थी।और वो था अभी प्रताप सिंह, जिसकी दुनिया में से वो खुद था, अब ये घर में कोई नहीं था।कहते हैं कि जिसका जितना नाम मशहूर होता है, उतनी उसके दुश्मन भी होते हैं।इसी दुश्मनी में उसने अपने सारे घरवालों को खोया।आज वो और आज वो जिंदगी में अकेला था। ये अकेलापन उसके स्वभाव को ही बदल गया।उसकी गाडी जैसे महल के गेट के अंदर आकर सामने दरवाजे रुकी तो कुछ नौकर जल्दी से जल्द भर आए।अभी गाडी सूत्र एक रोबदार चेहरा बुगाटी से भरा कर अंदर आया।लोग उसका इस्तेमाल लेकिन उसके पूछ पीछे आया।

एक नौकर ने डरते हुए पूछा हुकुम सा खाना?

हम जी लगाइए हम आते हैं।ये बोल के वो अपने कमरे में चला गया। कमरे में पहुँचकर उसने अपना कोर्ट निकाल कर।ही था कि तभी मोबाइल।मुझे उसने फ़ोन उठाया और सख्त आवाज़ में पूछा।काम हुआ या नहीं?

दूसरी तरफ से डरती हूँ भाई में कोई बोलना नहीं उस लड़की ने मना कर दिया उसे।उस जमीन को देने के लिए।

एक दो टके की लड़की की इतनी जरूरत कि वह प्रकाश सिंह को मना करें।हमारे कलवा।हम भी तो देखिए कौन पैदा हो गया इस धरती पर ऐसा जो हमने ना करना जानता है।ये बोल उसने।

फ़ोन कट गुस्से में बिस्तर पर फेंक दिया बनाना शहर रात का वक्त।

काशी दूध गर्म करके अपने बाबा के कमरे में आई तो देखा आनंद जी बैठ के रामायण पढ़ रहे थे।

उसमें दूध का गिलास उन्हें देते हुए और रामायण के।ले के माथे पर लगा बंद करके रखते का बाबा चलिए अब दूर कीजिये।और सोच रही है और रखिए रामायण अब आनंद जी भी ग्लास के ग्लास लेकर बिस्तर पर बैठ गए।

काशी कपड़ों को तय करते हुए बोली बाबा आज फिर वो लगाए थे जमीन के लिए मैंने मना कर दिया।

उन्होंने चिंता जताते हुए कहा, काशी बेटा अगर वो लोग चाहते हैं वो जमीन।तो देखे छुटी करो ना वैसे लोगों से लफड़ा लेना।अपनी आपकी जान हमारे लिए बहुत कीमती है, बेटा।

कुछ नहीं होगा हमें वो जमीन हम किसी को नहीं देना चाहते हैं और ना देंगे वो माँ ने हमें दिया था वो इतना कह के अपने बाप को सुलह के वहाँ से चली गयी

वो छत पर आकर खड़ी।हो गयी।हल्की हल्की ठंड थी। वो चाँद को देखते हुए बोली कोई ऐसा भी हो सकता है क्या? मानना है कि एक जमीन के लिए इतना पागल जब ना बोल दिया तो क्यों फिर बार बार।वो सब भी वो जब भी गुस्सा होती तो ऐसे मालवीयजी को शिकायत कर दी थी।

दूसरी तरफ अभय अपने कमरे में बनी बड़ी सी बालकनी में खड़ा होके आसमान की तरफ देखकर बोला मुझे।ना सुनना पसंद नहीं है।और तुम एक मामूली सी लड़की जिसने मुझे सिर्फ ना नहीं बोला।मुझे मजाक समझ लिया।अब मैं तुम्हें बताऊँगा मैं कौन हूँ।वेट वेट एंड वॉच अपने गुरूर में बोला।

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