Frogs That Rode A Snake Story In Hindi-सांप की सवारी करने वाले मेंढक की कहानी

।सांप की सवारी करने वाले मेंढक की कहानी

प्राचीन समय की बात है की वरुण पर्वत के पास एक राज्य था।

उस राज्य में एक दुष्ट प्रवृति का सांप भी रहता था उसका नाम मंडवीश था।

ज्यादा उम्र होने के कारण उसको अपने भोजन के प्रबंध करने में असमर्थ हो चला था।

एक दिन सांप ने सोचा की में तो दिन पर दिन बूढ़ा होता जा रहा हूँ ऐसे में अपना खाना कैसे खाऊंगा।

एक दिन सांप के मन में एक युक्ति आयी तो तो साप एक तालाब के किनारे बहुत ही दुखी अवस्था में बैठ गया।
और सुबह से शाम तक बैठा ही रहा और उसकी आँखों से लगातार आंसू वह रहे थे।

तो तालाब से आने जाने वाले सभी छोटे बड़े जानवर उसे देखते जा रहे थे।

तो ये बात मेढ़को के राजा को पता चली तो उसने सांप से क्या हुआ भाई तुम इतने परेशान क्यों हो।

और आप सुबह से यहाँ बैठ कर क्यों रो रहे हो ऐसा क्या हुआ है तुम्हारे साथ।

सांप ने मेढ़क की बात सुनकर बहुत तेज तेज रोने लगा और बोला की आज मुझ से बहुत ही बड़ा पाप हुआ है।

और में उसी की वजह से बहुत दुखी व परेशान हूँ।

मेंढक ने सांप से कहा की क्या पाप हुआ है हमें भी बताओ।

तो सांप कहने लगा की आज में बहुत भूखा था तो में खाने की तलाश में इधर उधर घूम रहा था।

तो मुझे एक छोटा मेंढक दिखाई दिया तो में उसे खाने के चक्कर में उसके पीछे पीछे चला गया था।

और मुझ से डरकर वो छोटा मेंढक एक ब्राह्मण के घर में जाकर छिप गया तो में भी भी उसी ब्राह्मण के घर में चला गया।

मैंने देखा की ब्राह्मण की बेटी उस मेंढक के साथ खेलने लगी।

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मैंने जैसे ही उस मेंढक को खाने की कोशिश की तो गलती से मैंने उस ब्राह्मण की बेटी को डस लिया।

और उसकी तुरन्त ही मृत्यु हो गयी।गुस्से में आकर ब्राह्मण ने मुझे श्राप दिया।

तो मैंने ब्राह्मण से बहुत क्षमा याचना की तो ब्राह्मण ने मुझे कहा की अगर में उम्र भर अपनी पीठ पर मेंढ़को को सवारी कराऊ।

तो मुझे मेरे श्राप से तभी मुक्ति मिलेगीमें इसी बात को लेकर बहुत परेशान हूँ।

सांप ने मेढ़क से कहा की तुम तो जानते ही हो की मुझ जैसे दुष्ट सांप पर कौन यकीन करेगा।

और कौन मेरी पीठ पर सवारी करना चाहेगा

उस दुष्ट सांप की बात सुनकर मेंढ़को का राजा सोचने लगा की ये सांप वास्तव में बहुत ही ज्यादा दुखी है।

और सच में ही ये अपने पाप का प्रायश्चित करना चाहता है।
क्यों ना में इस सांप की पीठ पर सवारी का मज़ा ले लू।

मैंने जीवन में कभी भी सांप की पीठ पर सवारी नहीं की।

 

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तो ये सब सोचकर मेंढको के राजा ने सांप कहा की भाई तुम इतना परेशान क्यों हो रहे हो।

में तुम्हारी पीठ पर सवारी करूंगा और तुमको तुम्हारे श्राप से मुक्ति दिलाऊंगा।
इतना कहकर झट से मेंढक उछलकर सांप की पीठ पर बैठ गया।

सांप भी मेंढक को अपनी पीठ पर सवारी करने लगा कुछ देर बाद सांप ने धीरे धीरे रेंगना शुरू किया।

तो मेंढक ने उससे पूछा भाई क्या हुआ तुम धीरे धीरे क्यों चल रहे हो।

सांप ने कहा की में बहुत भूखा हूँ।

और में अब तब तक किसी को नहीं खा सकता तब तक कोई भी मेंढक मुझे खाने की इज़ाज़त नहीं देगा।

तब तक में नहीं खा सकता।

अभी भी मेंढक उस दुष्ट सांप की चाल को नहीं समझ पाया।

और उसने अपनी प्रजा में से कोई भी मेंढक खाने की इज़ाज़त देदी।

सांप को बिना कुछ किये रोज मेंढक खाने को मिलने लगे।

और सांप काफी हष्ट पुष्ट हो गया।

 

 Moral of the story ;कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है की हमें कभी भी दुष्टो की बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए ।

क्योकि दुष्ट अपनी दुष्टता कभी नहीं छोड़ सकता है