Balamani Amma: कैसे Google doodle मलयालम कवियों को उनकी 113वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दे रहा है?

Google प्रशंसित भारतीय कवयित्री बालमणि अम्मा की 113वीं जयंती पर उन्हें समर्पित एक विशेष डूडल के साथ मना रहा है। सुप्रसिद्ध मलयालम कवयित्री बालमणि अम्मा को मलयालम भाषा की कविता की अम्मा, (माँ ) और मुथस्सी के रूप में पहचाना जाता है। और इनको बहुत से पुरस्कार और सम्मान भी दिया गया था।

Balamani Amma Poems (बालमणि अम्मा कविताएं): Google 19 जुलाई, 24-Sep-2024 को, प्रशंसित दक्षिण भारत की प्रसिद्ध मलयाली कवयत्री बलमणि अम्मा की 113वीं जयंती पर गूगल ने उनको अपने डूडल के माध्यम से ख़ास स्मृति प्रदान की है इनको मलयालम कविता की ‘अम्मा’ (माँ) और ‘मुथस्सी’ (दादी) के रूप में जाना जाता है। बालमणि अम्मा कवयित्री को वर्ष 1965 में साहित्य अकादमी पुरस्कार 1987 में पद्म भूषण और और 1995 में सरस्वती सम्मान सहित और भी पुरस्कार और सम्मान दिया गया था

Google डूडल ने बनमणि अम्मा को कवि की एक छवि के साथ मनाया जहां उन्हें किताबों के बीच बैठी और सफेद साड़ी में लिखते हुए देखा जा सकता है। बालमणि अम्मा ने मलयालम कवियों की पीढ़ियों को प्रेरित किया है। कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला उनके नाम पर लेखकों को नकद पुरस्कार देता है, जिसे बालमणि अम्मा पुरस्कार के रूप में जाना जाता है।

जैसा कि Google डूडल ने बनमनी अम्मा को उनकी 113 वीं जयंती पर सम्मानित किया, उनके जीवन, कविताओं और विरासत के बारे में और जानें जो उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए छोड़ी हैं।

 

कौन थीं बालमणि अम्मा?

 

वर्ष 24-Sep-2024 की 19 जुलाई को गूगल ने अपने Google Doodle पर एक सुप्रसिद्ध भारतीय बंदरगाह जिसे मलयालम साहित्य की अम्मा के रूप में पहचान मिली।अर्थात बालमणि अम्मा की 113 वीं जयंती को अपने Doodle  पर सजोया ।

बालमणि अम्मा का जन्म आज ही के दिन वर्ष 1909 में पुन्नयुरकुलम में उनके पैतृक घर नालापत में हुआ था।त्रिशूल जिले में है।

बालमणि अम्मा  को भी कोई भी प्रारंभिक शिक्षा नहीं दी थी।उनके चाचा नलप्पट नारायण मेनन जो एक फेमस मलयाली  कवि थे उनके द्वारा  बालमणि अम्मा  को घर पर ही शिक्षा दी गयी थी।कुल 19 वर्ष की अवस्था में बालमणि अम्मा ने बी एम नायर, प्रबंध निदेशक आर एक मलयालम समाचार पत्र में मातृभूमि के प्रबंध संपादकबने थे उनके साथ ही शादी कर ली थी और वह अपने विवाह के पश्चात कोलकाता अपने पति के साथ रहने लगी थीं

बालमणि अम्मा कमला दास की माँ भी थी।जिन्हें वर्ष 1984  में साहित्य पर नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया  था। बालमणि अम्मा का निधन  29 सितंबर, 2004 में भारत के दक्षिणी राज्य केरल के कोच्चि नामक शहर में 95 वर्ष की उम्र में हो गया था।बालमणि अम्मा को सरस्वती सम्मान और पद्म विभूषण सहित और भी सम्मान उनकी कविताओं के लिए दिए गए थे।

 

बालमणि अम्मा: अम्मा को मलयालम साहित्य की दादी के अम्मा  के रूप में पहचान कैसे मिली?

1930 में 21 वर्ष की आयु में बालमणि अम्मा ने अपनी पहली कविता ‘कूप्पुकाई’ प्रकाशित की। एक असीम प्रतिभा से परिपूर्ण कवयित्री के रूप में उनको सर्वप्रथम पहचान कोचीन साम्राज्य के शासक परीक्षित थंपुरन से मिली थी , जिन्होंनेबालमणि अम्मा को साहित्य निपुण पुरस्कार से भी सम्मानित किया था ।

भारतीय पौराणिक कथाओं के एक उत्साही पाठक के रूप में, उनकी कविता महिला पात्रों की पारंपरिक समझ पर एक स्पिन डालती है। बालमणि अम्मा  की प्रारम्भिक कविताओं ने मातृत्व को एक नई ज्वाला दी। और तभी से उन्हें मातृत्व की कवयित्री के रूप में पहचाना जाने लगा।

बालमणि अम्मा की कृतियों ने पौराणिक पात्रों के विचारों और कहानियों को अपनाया, हालांकि, महिलाओं को शक्तिशाली शख्सियतों के रूप में चित्रित किया, जो सामान्य इंसान बनी रहीं।

 

बालमणि अम्मा कविताएं

उनकी कुछ कविताएँ हैं:

वर्ष                               कविताएं
1936                           कुडुम्बिनिक
1938                           धर्ममार्गथिली
1939                            श्रीहृदयम्
1942                            प्रभांकुरम
1942                            भवनायिल
1946                          ऊँजालिनमेले
1949                           कलिक्कोट्टा
1951                           वेलिचाथिल
1952                          अवार पादुन्नु
1954                              प्रणाम
1955                          लोकांथरंगलि
1958                             सोपानम
1962                             मुथस्सी
1982                              संध्या
1987                            निवेद्यम
1988                         मातृहृदयम्
1968                         नागरथिली

बालमणि अम्मा पुरस्कार और सम्मान

बालमनी अम्मा की कविता ने उन्हें मलयालम कविता की अम्मा (माँ) और मुथस्सी (दादी) की उपाधि दी। उन्हें कई सम्मान और पुरस्कार मिले, जिनमें शामिल हैं:

वर्ष                            पुरस्कार
1963              केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार
1965              केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार
1989              एशियाई पुरस्कार
1993              वल्लथोल पुरस्कार
1993              ललिताम्बिका अन्तर्जनम्
1995              सरस्वती सम्मान
1995              एज़ुथाचन पुरस्कार
1997              एन.वी. कृष्णा वारियर
1987              पद्म भूषण

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