पंचतंत्र की कहानी: कुम्हार की कथा | The Potter Story In Hindi

पंचतंत्र की कहानी

प्राचीन समय में एक गाँव में रघुवीर नाम का एक व्यक्ति रहता था वह पेशे से कुम्हार था ।

वो मिटटी के बर्तन बनाने का काम करता था और उन बर्तनो को बेचकर जो भी रूपये मिलते थे उनसे शराब पी लेता था ।

एक दिन उसने शहर जाकर बर्तनों को बेचा और उनके बदले में मिलने वाले रुपयों से शराब खरीद कर पी ली ।

गाँव पहुंचते पहुंचते उसको रात हो गयी उसने बहुत अधिक शराब पी रखी थी जिससे कारण उससे चला भी नहीं जा रहा था ।

उसके घर के रास्ते में बहुत से काँच पड़े थे तो  लड़खड़ा कर उन काँच पर गिर गया ।

और एक काँच उसके माथे पर लग गया खून बहने लगा उसके माथे से

उस कुम्हार ने अगले दिन गाँव में ही एक वैध से मरहम पट्टी करवा ली ।

वैध ने उससे कहा की ये चोट जो तुम्हारे माथे पर लगी है ।उसका निशान नहीं जायेगा।

अपने घर आ गया और कुछ समय ऐसे ही व्यतीत होता चला गया।

कुछ दिनों के बाद उस गाँव में सूखा पड़ी और गाँव के सभी लोग उस गाँव से पलायन करने लगे तो उस कुम्हार ने भी पलायन कर लिया।

उसने एक नए देश में पलायन कर लिया वह नए देश में राजा के यह नौकरी माँगने गया।

तो राजा ने कुम्हार को देखा और उसने सोचा की इसके माथे पर जो निशान है उसे देखकर लगता है।

की ये जरूर कोई अच्छा योद्धा होगा और किसी युद्ध में ही इसके माथे पर यह चोट लगी होगी।

यही बात को सोच कर राजा ने उस कुम्हार को अपने दरबार में एक उच्च पद दे दिया।

राजा ने उस कुम्हार से उसके बारे में कुछ नहीं पूछा और ना ही कोई जाँच पड़ताल की।

उस कुम्हार ने भी राजा को अपनी सच्चाई नहीं बताई।

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और राजा के दरबार के ऐशो आराम से रहने लगा।

ये सब देख क्र राजा का सेनापति , मंत्रीगण ,और राजकुमार उस कुम्हार से चिढ़ने लगे।

ये सभी मिलकर उसको राज दरबार से बाहर निकालने  के रास्ते खोजते रहते थे।

कुछ समय बाद राजा के महल पर किसी शत्रु ने आक्रमण कर दिया

तो राजा ने उस कुम्हार को युद्ध में भेजने का निर्णय लिया।

और उसने कुम्हार को बुलाया और राजा ने बोला की तुम निश्चय ही एक वीर योद्धा हो ये तुम्हारे माथे पर जो चोट है।

ये तुम्हारे किसी युद्ध में लगी होगी इसलिए ही मैंने तुम्हे अपने यह रखा था जाओ

और युद्ध में विजयी होकर लौटो।

राजा की बात सुनकर कुम्हार सोचने लगा की में राजा को सच बता दूँ

तो अवश्य ही राजा मेरा सच सुनकर मुझे माफ़ कर देंगे।

राजा की बात सुनकर कुम्हार सोच में पद गया और राजा से बोला महाराज मैं कोई वीर योद्धा नहीं हूँ।

में तो अपने गाँव में एक साधारण सा किसान था और ये चोट तो मुझे शराब पीने के बाद लगी थी ।

कुम्हार की बात सुनकर राजा को बहुत गुस्सा आया

और राजा ने चिल्ला कर कुम्हार से कहा की तुमने मेरे साथ छल किया है।

मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर माफ़ नहीं करूँगा।

ये सुनकर कुम्हार राजा के सामने गिड़गिड़ाने लगा और माफ़ी माँगने लगा।

राजा ने खा इससे पहले की राजकुमारों या सेनापति को तुम्हारा सच पता लगे।

उससे पहले यहाँ से भाग जाओ में बस इतना ही कर सकता हूँ। तुम्हारे लिए

।”राजाके कहे अनुसार कुम्हार वह से भाग गया और उसने बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाई ।”

 

कहानी से सीख:

इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है की हमें अपने जीवन में कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए।

क्योंकि झूठ को ज्यादा दिन तक नहीं छुपा सकते है एक न एक दिन सबको पता चल ही जाता है ।

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