Tenalirama ki hindi Kahaniya : Dudh Na Pine Wali Billi
राजा कृष्ण देव राय ने दक्षिण भारत के विजयनगर में शासन किया।
एक बार विजयनगर में चूहों ने बहुत तबाही मचाई थी, जिससे सभी लोग परेशान थे।
क्योंकि चूहे किसी के कपड़े पर कुतरते थे, किसी की फसल और अनाज को नुकसान पहुंचाते थे।
इससे व्यथित होकर एक दिन समस्त प्रजा राजा कृष्णदेव राय के दरबार में पहुंची
और उनकी समस्या दूर करने की प्रार्थना की।
प्रजा के साथ आये उनके सरदार ने राजा कृष्णदेव से कहा की हमारे पालनकर्ता राजन हम सबको को,
अपने राज्य में फैले चूहों के द्वारा फैलाये हुए आंतक से निजात दिलायेइन चूहों ने हमारा जीना दुर्भर कर दिया है।
इस बात पर राजा ने ऐलान किया कि हर घर में एक बिल्ली रखी जाए और उसकी देखभाल की जाए।
उन्होंने प्रत्येक घर में बिल्लियों की देखभाल के लिए एक गाय भी दी।
महाराज ने तेनालीराम को एक बिल्ली और एक गाय भी दी।
बिल्लियों के आने से कुछ ही दिनों में चूहे भाग गए और बिल्लियाँ भी गायों का दूध पीकर मोटी हो गईं।’
तेनालीराम की कहानी: दूध न पीने वाली बिल्ली
अब लोगों के सामने एक ही समस्या थी कि बिल्लियों को समय से दूध पिलाया जाए और गायों को पाला जाए।
वहीं बिल्लियां दूध पीने के बाद इतनी मोटी हो गईं कि हिल भी नहीं पा रही थीं।
तेनालीराम के घर में रहने वाली बिल्ली भी दूध पीकर इतनी तंदरुस्त होगयी की उससे ठीक से चला भी नहीं जाता था।
ये देखकर तेनाली राम भी बहुत दुखी हो गए थे तब उन्होंने बिल्ली की एक युक्ति के बारे में पता लगाया।
उन्होंने प्रतिदिन की तरह ही बीली के लिए एक कटोरे में दूध भरकर रख दिया।
जैसे ही बिल्ली दूध पीने के लिए आयी तो गर्म दूध होने से उसका मुँह और पंजा जल गया और इस वजह से बिल्ली दूध नहीं पी सकी ।
इस तरह कई दिन बीत गए, जिससे बिल्ली दुबली हो गई और भागने लगी।
तेनालीराम की कहानी: दूध न पीने वाली बिल्ली
इस बीच, राजा कृष्णदेव राय ने सभा में बिल्लियों का निरीक्षण करने की घोषणा की
और एक निश्चित दिन पर सभी को अपनी बिल्लियों को दरबार में लाने का आदेश दिया।
सबकी बिल्लियाँ बहुत मोटी हो चुकी थीं, लेकिन तेनालीराम की बिल्ली बहुत पतली थी।
राजा ने कारण पूछा तो उसने कहा कि मेरी बिल्ली ने दूध पीना छोड़ दिया है।
राजा ने यह बात नहीं मानी और बिल्ली के सामने दूध का कटोरा रख दिया। दूध देखकर बिल्ली भाग गई।
इस घटना को देख हर कोई सन्न रह गया। राजा तेनालीराम से इसका रहस्य जानना चाहता था।
तब तेनालीराम ने कहा, “महाराज, यदि दास आलसी हो जाए, तो उसका रहना स्वामी पर भार बन जाता है।
यही हाल इन सभी बिल्लियों का है। अपनी बिल्ली के आलस्य को बुझाने के लिए मैंने उसे गर्म दूध पिलाया।
जिससे उसका मुँह जल गया और वह अपने आप ही अपना भोजन ढूँढ़ने लगी।
इस वजह से वह ठंडा दूध देखकर भी भाग जाती और अपना खाना ढूंढती।
धीरे-धीरे वह फुर्तीला और तेज हो गया, जैसे गुरु को अपने सेवक के साथ करना चाहिए और उसे सुस्त नहीं होना चाहिए। ”
राजा को तेनालीराम की बात पसंद आई और उसने तेनालीराम को एक हजार सोने के सिक्कों से पुरस्कृत किया।
Moral of the story कहानी से सीखो
हमें कभी भी किसी को इतना दिलासा नहीं देना चाहिए कि वह इस कहानी में बिल्ली की तरह आलसी हो जाए।
साथ ही मेहनत करने वाले सभी की सराहना की जाती है।