विपिन बाबू एक ऐसे कवि थे, जो नारी को संसार की सबसे सुन्दर रचना मानते थे।
उनकी कविताओं में भी स्त्री के रूप, सौन्दर्य और यौवन की ही प्रशंसा की जाती थी।
एक महिला का जिक्र होते ही वहवह अपनी खूबसूरत कल्पना की एक अलग ही दुनिया में चले जाते थे।।
उसने अपने जीवन में भी ऐसी ही सुंदर स्त्री की कल्पना की थी।
विपिन बाबू के मन में था कि उनकी पत्नी को फूल की कोमलता, सूर्य की तेज, कोयल की आवाज और सुबह की लाली से सुशोभित किया जाए।
अब विपिन बाबू की कॉलेज की परीक्षा भी हो चुकी थी। विपिन के लिए कई रिश्ते आ रहे थे।
एक दिन विपिन के मामा ने भी उसकी शादी तय कर दी विपिन लड़की को देखना चाहता था।
उसे देखना था कि जिस पत्नी की उसने कल्पना की थी वह वैसी है या नहीं।
विपिन अपनी होने वाली पत्नी को देखने के लिए मामा से अनुरोध करता है,
लेकिन मामा उसे बताता है कि वह बहुत सुंदर है, उसने उसे खुद देखा है।
अपने मामा की बातों पर विश्वास करते हुए विपिन शादी के लिए राजी हो गया।
शादी का दिन भी आ गया मंडप के पास बैठे विपिन अपनी पत्नी को देखने के लिए बेताब थे।
उसने आभूषणों से सजी हुई पत्नी को देखा।
चेहरे पर घूंघट, हाथों और पैरों की खूबसूरत उंगलियों को देखकर उन्हें थोड़ी राहत मिली।
दूसरे दिन विदाई के बाद जैसे ही डोली विपिन के घर पहुंची तो वह तुरंत पत्नी को देखने दौड़ा.
तभी उसकी पत्नी घूंघट उठाकर पालकी से बाहर देख रही थी। विपिन की नजर जैसे ही उन पर पड़ी तो उन्हें बहुत दुख हुआ।
विपिन ने जिस पत्नी का सपना देखा था, वह बिल्कुल भी वैसी नहीं थी।
चौड़ा मुंह, चपटी नाक, सूजे हुए गाल विपिन को बिल्कुल पसंद नहीं थे। हालांकि रंगत गोरी थी,
लेकिन इसके अलावा वह विपिन के सपनों की दुल्हन से बिल्कुल अलग थी।
विपिन की सारी खुशियां चली गईं। वह अपने मामा पर बहुत क्रोधित था,
जिसने लड़की के लिए प्रशंसा के पुल बांध दिए थे। पहले उसने अपने चाचा से लड़ाई की।
उसके बाद ससुराल वालों के साथ और फिर परिवार वालों के साथ भी बहुत नाराज था।
इतना सोचने के बावजूद विपिन का दिल उसे मानने को तैयार नहीं था। वह घंटों मेकअप करती थी,
अपने बालों को संवारती थी, लेकिन विपिन को यह बिल्कुल पसंद नहीं था।
विपिन हमेशा उससे दूर भागता था और उसकी पत्नी पूरे मन से उसकी सेवा करना चाहती थी।
तब तक विपिन एक पल के लिए भी घर में नहीं रह पाता था।
विपिन की पत्नी आशा जब भी उससे बात करने की कोशिश करती तो वह उससे दो झूठ बोलता।
विपिन रोज दोस्तों के साथ बाहर जाता था और पत्नी घर पर उसका इंतजार करती रहती थी।
काफी देर बाद जब विपिन खाना खाने घर आया तो आशा ने कहा कि तुम मेरी वजह से घर पर रहना बंद कर दोगे?
विपिन ने मुँह फेरते हुए उत्तर दिया, “मैं घर पर ही रहता हूँ। आजकल सिर्फ नौकरी खोजने के लिए बहुत दौड़-भाग करनी पड़ती है।
आशा ने कहा, “मैं अच्छी तरह जानती हूं कि तुम घर पर क्यों नहीं रहते हो हो।
आप डॉक्टर से बात क्यों नहीं कर लेते और मेरे चेहरे को वैसा ही बना देते जैसा आप चाहते हैं।”
विपिन ने नाराज़ होकर कहा, “तुम बेवजह क्यों बकवास कररही हो । तुम्हें यहाँ आने के लिए किसने कहा?”
विपिन की पत्नी ने कहा कि अगर तुमको कोई भी परेशानी है तो उस परेशानी को केवल तुम्हें दूर कर सकते हो।”
विपिन बापू ने कहा जो काम स्वयं भगवान नहीं कर सकते वो काम मैं कैसे कर सकता हूँ??”
उसमें विपिन की पत्नी आशा कहने लगी कि जो कुछ भगवान ने किया है, उसकी सजा तुम मुझे क्यों दे रहे हो?
दुनिया में कोई भी व्यक्ति तुम्हारी तरह अपनी पत्नी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करता होगा।।”
विपिन ने झुंझलाहट के साथ जवाब दिया कि क्या मैं तुम्हारे साथ गलत व्यवहार करता हूं।
क्या मैंने कभी तुमसे लड़ाई की है? तुम मेरे सामने आओ और मुझसे बहस करने लगो।
यह सब सुनकर आशा वापस चली गई। उसे लगा कि उसने मेरी ओर अपना दिल पत्थर का बना लिया है। अब वे मेरी नहीं सुनेंगे।
इधर विपिन का ऐसा रवैया देखकर आशा की तबीयत खराब हो गई। वह अपने जीवन से निराश थी।
वहीं विपिन बीमार आशा को देखने एक बार भी नहीं गए।
उसके मन में था कि अगर उसे कुछ हो गया तो इस बार मैं उसकी पसंद की लड़की से शादी करूंगा।
अब विपिन को और भी छूट मिल गई थी। पहले आशा कभी-कभी रुककर बाहर जाने का कारण पूछती थी,
लेकिन अब विपिन बिल्कुल फ्री हो गया था। क्योंकि अब आशा उससे कुछ भी नहीं पूछ पाती थी।
बुरी आदतों में पड़कर विपिन न सिर्फ अपना पैसा बर्बाद कर रहा था, बल्कि सेहत और चरित्र को भी बर्बाद कर रहा था।
तब तक विपिन का पूरा शरीर पीला और कमजोर होने लगा था।
शरीर में सिर्फ हड्डियां ही दिखाई दे रही थीं और आंखों के आसपास काले घेरे और गड्ढे हो गए थे।
उसका चेहरा देखकर विपिन उसे रोज संवारने की कोशिश करता है, लेकिन कुछ नहीं होता।
एक दिन आशा, जो महीनों से बीमार थी, बरामदे के पास चारपाई पर पड़ी थी।
उसने विपिन को बहुत दिनों से नहीं देखा था, इसलिए उसने विपिन को बुलाने के लिए किसी को भेजा।
मन में आशा थी कि बुलावा भेज दिया गया है, लेकिन वे नहीं आएंगे।
आशा का फोन आने पर विपिन पहले की तरह डरा हुआ नहीं था।
वह बिना किसी हिचकिचाहट के आज आशा के पास जाकर खड़ा हो गया।
आशा ने जैसे ही उसे देखा वह चौंक गई।
उसने पूछा, “क्या तुम बीमार हो? बहुत दुबले हो गए हैं और पहचाने भी नहीं जाते।
विपिन ने आशा से कहा कि अब जिंदा रहने का भी क्या फायदा है?
आशा ने गुस्से में विपिन का हाथ पकड़ कर खाट पर बिठाया और कहा, “आप दवा क्यों नहीं करते?”
आशा को आज इस तरह खींचने पर विपिन को गुस्सा नहीं आया।
उनके व्यवहार में कोई कड़वाहट नहीं थी। उनका गुस्सा पिघल गया था।
खाट पर बैठते ही विपिन ने उत्तर दिया, ”अब दवा से मेरा कुछ नहीं होगा।
मौत मुझे साथ ले जाएगी। मैं यह आपको आहत करने के लिए नहीं कह रहा हूं।
मैं एक भयानक बीमारी से पीड़ित हूं और अब मैं बच नहीं सकता।”
इतना कहकर विपिन बेहोश होकर चारपाई पर गिर पड़ा।
उसका पूरा शरीर कांपने लगा और पसीना आने लगा।
विपिन की यह हालत देखकर महीनों से बीमार आशा जल्दी से बिस्तर से उठी।
वह पानी लेकर आई और विपिन के चेहरे पर वार करने लगी, लेकिन उसे होश नहीं आया।
शाम तक विपिन का चेहरा टेढ़ा हो गया और उसके शरीर में कोई हलचल नहीं थी।
यह लकवा था, जिसमें विपिन गिर गया था।
इस बीमारी में बीमार आशा ने विपिन की बहुत सेवा की।
लगातार 15 दिनों से विपिन की हालत नाजुक बनी हुई है। दिन-रात एक करके आशा की मेहनत रंग लाने लगी।
विपिन की हालत में थोड़ा सुधार हुआ, लेकिन फिर भी आशा विपिन को गोद में रखकर ही दवा और खाना देती थी।
इन सब में वह अपनी सेहत को भूल चुकी थीं। शरीर बुखार से जल रहा था,
लेकिन विपिन की हालत के सामने उसे अपने स्वास्थ्य के बारे में कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था।
अब विपिन के दोनों पैरों में थोड़ी ताकत आ रही थी। चार-पांच महीने में वह अपने पैरों पर खड़ा होने लगा,
लेकिन उसका चेहरा टेढ़ा ही रहा। उसके चेहरे पर पहले जैसी मुस्कान नहीं थी।
एक दिन आईने में अपना चेहरा देखकर विपिन ने कहा कि भगवान ने मुझे मेरे कार्यों के लिए दंडित किया है।
आशा है कि मैं तुम्हें सुन्दर नहीं मानता था औरऔर आज देखो मैं खुद ही कितना बदसूरत हो गया हूँ।
तुमको भी मेरे साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा कि मैं बीते दिनों तुम्हारे साथ करता था
आशा ने हँसते हुए अपने पति से कहा, “यदि तुम मेरी आँखों से देखोगे तो तुम जानोगे कि तुममें कोई अंतर नहीं है।
आप वैसे ही हैं जैसे आप पहले थे, और जैसे आप अब हो।।”
विपिन ने कहा, “ठीक है, बंदर जैसा चेहरा दिख रहा है और तुम कहती हो की कोई अंतर ही नहीं है।।
तुम जानती हो कि भगवान ने मुझे मेरे कर्मों के कारण ही ऐसा दंड दिया है।।
सभी ने बहुत कोशिश की, लेकिन विपिन का चेहरा सीधा नहीं हो सका।
पति के पैरों पर खड़े होने के कुछ देर बाद ही आशा घर में पूजा करती रही,
क्योंकि उसने विपिन के लिए भगवान से मन्नत मांगी थी।
विपिन के घरएक भजन संगीत का कार्यक्रम चल रहा था।
तब आशा की एक सहेली ने उससे पूछा, “अब तुम्हारी अपने पति का मुख देखने की इच्छा नहीं होगी। मुँह टेढ़ा कैसे है?”
आशा ने गंभीर स्वर में कहा, “मुझे तो कोई फर्क नहीं दिखता।
उसका दोस्त पीछे मुड़ा और बोला, “चलो, थोड़ा बहुत होता है बातें ज्यादा मत करो।”
तब आशा कहने लगी, “मैं सच कह रही हूं। मैंने उनकी आत्मा को पाया है,
जो उनके रूप से बड़ी है और मैं हमेशा उनकी आत्मा की ओर देखता हूं।”
विपिन एक दोस्त के साथ कमरे में बैठा था। तभी उसके एक मित्र ने बरामदे की ओर जाने वाली खिड़की खोली।
उसने विपिन से पूछा, “आज यहां बहुत सारी खूबसूरत लड़कियां हैं। मुझे बताओ कि तुम्हें तुम्हे कौन सी खूबसूरत लग रही है?।
विपिन ने कहा, “खिड़की बंद करो और जहां तक पसंद की बात है, मुझे वह पसंद है जिसके हाथ में फूलों की थाली है।”
दूसरे दोस्तों ने कहाकि अब आपके चेहरे की रौनक खराब सी लग रही है।? देखा जाए तो दूसरी महिलाओं की तुलना में कम सुंदर दिख रही है।”
विपिन ने कहा, मैं उसकी आंतरिक सुंदरताऔर उसकी आत्मा को देख रहा हूँ जो अन्य लोगों से जो अन्य से ज्यादा खूबसूरत है।
फिर उसने पूछा, “अच्छा, क्या यह तुम्हारी पत्नी है?”
विपिन ने कहा, “हां, बिल्कुल, विपिन ने कहाविपिन ने कहा, बेशक ये महिला ही मेरी पत्नी है जो एक देवी के समान है।।”
Moral of the story कहानी से सीख:
प्रेमचंद जी की इस कहानी से हमें यह शिक्षा है
कि हमें कभी भी किसी व्यक्ति किसी व्यक्ति को उसकी बाहरी सुंदरता या शारीरिक सुंदरता से नहीं देखना चाहिए।
क्योंकि शारीरिक सुंदरता से कहीं ज्यादा अधिक मूल्यवान।मंकी और चरित्र की।सुन्दरता होती है।।