हाफिज नूरानी शेख चिल्ली का पुराना दोस्त था।
नारनौल कस्बे में उनका अच्छा कारोबार था। लेकिन, उसकी पत्नी नहीं थी, वह अपने बेटे और बहू के साथ अपनी बड़ी हवेली में रहता था।
बेटे की शादी को सात साल हो चुके थे, लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी।
हाफिज साहब को हमेशा इस बात की चिंता सताती रहती थी कि परिवार कैसे आगे बढ़ेगा।
एक दिन उन्होंने शेख चिल्ली को एक पत्र लिखा और उनसे इस मामले पर उनकी राय मांगी।
शेख चिल्ली कुरुक्षेत्र के पीर बाबा के प्रशंसक थाऔर दूर होने के बावजूद भी वह समय निकाल कर बीच-बीच में वहां जाता था ।
एक दिन वह हाफिज नूरानी के बेटे और बहू को अपने साथ पीर बाबा के पास ले गया।
वहां पीर बाबा ने मंत्र जप कर बहू को पानी पिलाया और हाथ पर ताबीज भी बांध दिया।
इसके बाद पीर बाबा ने कहा, ‘अगर अल्लाह ने चाहा तो इस साल आपकी मनोकामना जरूर पूरी होगी।’
पीर बाबा का ताबीज असर हुआ और एक साल के भीतर ही बहू को एक बेटा हुआ और हाफिज नूरानी दादा बन गए।
देखते ही देखते हाफिज साहब का आंगन खुशियों से भर गया।
इस खुशी को मनाने के लिए एक समारोह का आयोजन किया गया और शेख चिल्ली को एक विशेष निमंत्रण भेजा गया।
शेख चिल्ली निमंत्रण पाकर बहुत खुश हुए और उन्होंने अपनी पत्नी से जल्दी तैयारी करने को कहा।
बेगम ने झट से कहा, ‘मैं में क्या तैयारी करू मेरे पास भी पहनने को कुछ भी नहीं है और न ही तुम्हारे पास कुछ है पहनने के लिए ।
अगर आप इस हालत में चले गए तो दुनिया हंसेगी।
बेगम की बात सच थी, इसलिए शेखचिल्ली चुप हो गई।
वह जानता था कि हाफिज साहब नारनौल के बड़े आदमी हैं और उनकी जगह जश्न बड़े हैं। ऐसे में शेखचिल्ली कुछ तरकीब सोचने लगा।
नवाब साहब के धोबी शेख चिल्ली को बहुत मानते थे ।
कुछ दिन पहले उसने उसे नवाब के गुस्से से बचाया था और उसने शेखचिल्ली से कहा था कि समय आने पर वह उसके लिए मर भी जाएगा।
इस घटना को याद करते ही शेखचिल्ली उनके पास गया और अपने लिए और बेगम के लिए कुछ नए कपड़े मांगे।
शेख चिल्ली ने धोबी से कहा कि नारनौल से लौटते ही मैं तुम्हें कपड़े वापस कर दूंगा।
धोबी घबरा गया, लेकिन उसने वादा किया था। उसने किसी तरह शेख चिल्ली को कपड़े दिए और कहा,
‘ये कपड़े नवाब और उसकी भतीजी के हैं। इसे सुरक्षित लौटातो दोगे ना ।
‘ शेखचिल्ली ने हाँ में उत्तर दिया और कपड़े लेकर घर लौट आया।
बेगम ने जब कपड़े देखे तो वह बहुत खुश हुई। बेगम ने कहा, ‘कपड़े मिल गए हैं,
लेकिन जूते-चप्पल का इंतजाम कैसे होगा?’ नारनौल पैदल नहीं जाएंगे।
सवारी के बारे में क्या? शेखचिल्ली मोची के पास पहुँचा। उसने मोची से कहा कि मुझे और बेगम के लिए जूते चाहिए।
मोची ने कई जूते दिखाए।
शेखचिल्ली को सबसे महंगे जूते पसंद थे। उन्होंने कहा, ‘एक बार मैं बेगम को दिखा दूं, फिर खरीद लूंगा।
‘ मोची राजी हो गया। शेखचिल्ली जूते लेकर घर आया। अब बस सवारी का इंतजाम रह गया था।
घनश्याम के पास क्षेत्र में सबसे अच्छी घोड़ों की गाड़ी थी। वह किराए पर भी लेता था।
शेख चिल्ली उसके पास पहुँचे और बोले, मुझे नवाब साहब के किसी काम से नारनौल जाना है।
नवाब साहब की गाड़ी का एक घोड़ा बीमार हो गया है, इसलिए मुझे अपनी घोड़ा-गाड़ी दे दो।
नवाब साहब से किराया लूंगा। घनश्याम को लालच आया और उसने घोड़ा-गाड़ी उसे सौंप दी।
घर पहुंचकर शेखचिल्ली बेगम को उठाकर नारनौल के लिए रवाना हो गया।
उस समय नारनौल एक कस्बा था। शेखचिल्ली और उनकी बेगम शाही धूमधाम से वहां पहुंचीं।
उन्हें देखते ही इलाके में हड़कंप मच गया। उनकी दौलत के चर्चे दूर-दूर तक गूंजने लगे।
दावत में वो सबसे पहले मेहमान थे, इसलिए उनका अच्छे से ख्याल रखा गया
। वहां उन्हें जाफरानी तंबाकू वाला हुक्का दिया गया। शेख चिल्ली ने बहुत पहले हुक्का पीना छोड़ दिया था,
लेकिन यहां मुफ्त हुक्का मिलने के बाद कश पर भी फुसफुसाने लगा।
तभी सेलिब्रेशन का मजा फिर पानी में बदल गया. हाफिज नूरानी के कुछ दोस्त नवाब के घराने से जुड़े थे।
हाफिज ने उसे शेखचिल्ली से मिलवाया। उसने शेखचिल्ली के कपड़ों को पहचान लिया।
लेकिन, उस समय किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन शेख चिल्ली को उसके व्यवहार की जानकारी थी कि उसकी पोल खुल गई है।
धीरे-धीरे पूरे इलाके में कानाफूसी होने लगी, जिसकी जानकारी शेख चिल्ली को भी थी।
बस हुक्का पकड़ कर बेगम को खोजने के लिए भाग गया। बेगम के मिलते ही उसने कहा, ‘जल्दी से अपना सामान बाँधो और यहाँ से निकल जाओ।
कपड़े उजागर हो गए हैं। कहीं हम धोबी के संग न घिसें।
किसी तरह शेख चिल्ली और उसकी बेगम जश्न से बच निकलीं
तब बेगम ने हंसते हुए कहा, ‘उन निगों को बहुत नष्ट कर दिया जिन्होंने हमारे कपड़ों को पहचाना।
खैर, हम जश्न मना रहे थे, लेकिन सारी मस्ती गड़बड़ हो गई।’ तभी उनका ध्यान शाही हुक्का की ओर गया,
जो शेखचिल्ली के पास था। बेगम ने कहा, ‘तुमने यह हुक्का क्यों उठाया? नूरानी भाई इसकी तलाश में व्यर्थ होंगे।
बेगम की बात सुनते ही उन्होंने कहा, ‘अगर मेरी बस जाती है, तो मुझे अभी इन सबको लटका देना चाहिए।
नवाबों के कपड़ों में ऐसा क्या नाम लिखा है, जो ऐसे कपड़े कोई और नहीं पहन सकता।
शेख चिल्ली ने कहा, ‘काश अल्लाह मुझ पर कुछ रहम करता तो मैं ये सब देख लूंगा।
सबसे पहले मैं नूरानी के उत्सव में जाऊंगा और उन कमबख्त लोगों को ऐसी निगाहों से देखूंगा कि सिर से पांव तक शोला बन जाएंगे।
तुम इधर-उधर भागोगे और शोर होगा। और लोग उनसे दूर रहेंगे और उन पर जल डालेंगे।’
इसे देखकर वहां सब कुछ नष्ट हो जाएगा।’ दोनों इतना ही सोच रहे थे कि हुक्का हाथ से छूट गया।
अचानक, घोड़ा-गाड़ी में धुआं भर गया। इसी दौरान धोबी से कर्ज मांगे गए कपड़ों से चिंगारी निकलने लगी।
Moral of the storyकहानी से सीखो
हमें अपनी असली पहचान से भागना नहीं चाहिए और दिखावे की जिंदगी से दूर रहना चाहिए।