प्रेमचंद स्टोरी इन हिंदी: शूद्र
Munshi Premchand Story In Hindi – गाँव के किनारे एक झोपड़ी में एक माँ और बेटी रहती थी।
मां विधवा थी और बेटी कुंवारी थी। घर में और कोई आदमी नहीं था।
बेटी गौरा जब बगीचे से पत्ते लाती थी तो मां गंगा उसे फेंक देती थी।
इससे अगर उसे एक सारा अनाज मिल जाता तो वह उन दोनों को खाकर सो जाती थी।
इसी से वह गुजारा कर रहा था।
गौरा की माँ को अपनी बेटी की चिंता रहती थी
कि कहीं उनकी बेटी की सगाई तो नहीं हो जाएगी. अपने पति की मृत्यु के बाद, गंगा ने कभी दूसरा घर नहीं बसाया
और न ही उन्होंने कोई रोजगार शुरू किया। तब भी मां-बेटी शांति से रहती थीं।
इस बात को लेकर गांव के लोग मां-बेटी पर शक करते थे.
सभी के मन में ये विचार आता है बिना काम करने ये दोनों इतने आराम से रहती है ऐसा क्या काम करती है ये दोनों हैं
. उन्हें कभी किसी के सामने हाथ फैलाते नहीं देखा। निश्चित रूप से कुछ गलत है।
शुद्रो का समुदाय इतना छोटा होता है की पाँच कोस में ही आजाता है ।
आखिर क्या वजह है कि कोई गौरा से शादी करने को तैयार नहीं है।
गौरा की माँ ने उसकी शादी के लिए बहुत भजन पूजा और तीर्थ यात्रा करी थी ।
उड़ीसा तक आए लेकिन कुछ हल नहीं हुआ।
गौरा बहुत सुन्दर और चरित्रवान लड़की थी और गाँव के लोगो ने उसको किसी मुस्कुराते हुए या बोलते हुए नहीं देखा ।
उसकी आँखें कभी ऊपर नहीं उठीं। उनकी इस हरकत से गांव वालों का शक और भी मजबूत हो जाता था।
सभी ने सोचा कि एक महिला इतनी सती कैसे हो सकती है। दिन बीत गए।
गौरा की माँ चिंतित हो रही थी। उधर गौरा की खूबसूरती, उसकी जवानी गांव वालों की आंखों में चुभ रही थी.
एक विदेशी नौकरी की तलाश में गांव से दूर कलकत्ता जा रहा था।
दस-बारह कोस दूर पहुँचकर उसके लिए रात हो गई थी।
रात होने पर एक गांव पहुंच कर उसने गंगा के किनारे पर एक घर में चला गया ।
विदेशी को देखकर गंगा बहुत खुश हुई।
गंगा में परदेसी ने उसका नाम पूछा तो विदेशी ने बताया कि उसका नाम मैंगरू है।
इसके बाद गंगा ने मैंग्रो का बहुत सम्मान किया। उसके लिए भी अच्छा खाना बनाओ।
और समय रहते दोनों के बीच शादी की बात चल गयी
मंगरू एक युवक था। तभी उसकी नजर गौरा पर पड़ी।
गौरा एक सुंदर और शांत लड़की थी, जिसे देखकर मैंगरू को भी प्यार हो गया
और वह जल्दी से गौरा से सगाई करने के लिए तैयार हो गया।
उसने साड़ी और कुछ गहनों के लिए पैसे उधार ले कर रिश्ता कर दिया था ।
गंगा बहू को अपनी नजरों से दूर नहीं रखना चाहती थी इसलिए दोनों गंगा के साथ रहने लगे।
अभी दस-पंद्रह दिन भी नहीं बीते थे कि मंगरू के कानों में बहुत सी बातें गिरने लगीं।
बिरादरी के अलावा अन्य जातियों के लोग भी कई तरह की चीजें बनाने लगे।
मैंगरू इन अटकलों से परेशान था, लेकिन वह गौरा को भी नहीं छोड़ना चाहता था।
एक महीने बाद मंगरू अपनी बहन के घर गया। दीदी ने खाना परोसा।
मैंगरू ने जीजाजी को अपने साथ रात का भोजन करने को कहा। जीजाजी ने कहा- तुम खाओ, मैं बाद में खाऊंगा।
मैंगरू को कुछ शंका थी। उन्होंने साफ-साफ पूछा कि मामला क्या है?
जीजाजी ने कहा- मैं तुम्हारे साथ नहीं खा सकता।
आपने बिरादरी के बाहर शादी की है। किसी से न कुछ पूछा और न कुछ बताया।
जब तक पंचायत है, मैं तुम्हारे साथ नहीं बैठ सकता।
आपके कार्यों के कारण, मैं समाज के साथ अपने संबंध समाप्त नहीं कर सकता।
मैंगरू जल्दी से उठा और ससुराल आ गया। मन बेचैन था।
उसने किसी से कुछ नहीं बोला और गोरा को रात में अकेले छोड़ कर चला गया ।
इस तरह कई साल बीत गए, लेकिन मैंगरू का कुछ पता नहीं चला।
पति के गायब होने पर भी गौरा उदास नहीं थी।
वह हंसती और खेलती थी, मांग पर सिंदूर लगाती थी, रंग-बिरंगे कपड़े पहनती थी।
मैंगरूअपने पीछे एक भजन पुस्तक छोड़ गया था।
अपने खाली समय में गौरा उस किताब का एक भजन गाती थीं।
पहले गौरा गांव की महिलाओं से बहुत मिलती-जुलती नहीं थी।
वास्तव में, उनके पास उन महिलाओं के साथ बात करने के लिए कोई विषय नहीं था।
गौरा के पास अब गृहस्थ जीवन के बारे में बहुत सी बातें थीं, जिनकी चर्चा वह गली की महिलाओं से करती थीं।
वह सबको बताती है कि मंदारू कितना अच्छा, सहनशील है।
तभी वहां मौजूद एक महिला ने पूछा- गौरा मैंगरू आपको छोड़कर क्यों चला गया ?
गौरा कहती हैं- क्या कभी ससुराल में आदमी रह सकता है?
बाहर जाकर पैसा कमाना ही आदमी का असली काम है।
वहीं जब किसी ने गौरा से पूछा कि मैंगरू चिट्ठी क्यों नहीं लिखता?
इस पर गौरा मुस्कुराती है और कहती है- अपना ठिकाना बताने से झिझकते है ।
जानिए गौरा सामने आएगी। सच कहूं तो मैं उनके बिना एक दिन भी नहीं रह सकती हूँ ।
एक दोस्त ने कहा- हम आपकी नहीं सुनते।
अवश्य ही तुम्हारे और मैंगरूके बीच लड़ाई हुई होगी। फिर उसने बिना बताए तुम्हें ऐसे ही छोड़ दिया।
गौरा ने कहा- बहते हुए, क्या कोई अपने भगवान से भी लड़ता है?
जिस दिन ऐसी स्थिति आती, मैं कहीं जाकर मर जाता।
बहुत दिनों के बाद एक व्यक्ति उनके घर आकर रहने लगा
संयोग से वह मैंगरू का पड़ोसी निकला।
उसने गौरा को कुछ पैसे और दो साड़ियाँ थमाईं और कहा कि मैंगरू ने मुझे तुम्हें लेने के लिए भेजा है।
गौरा की खुशी का ठिकाना नहीं था
रास्ते भर गौरा के मन में हजारों अच्छे-बुरे विचार आते रहे।
बीच-बीच में उसे अपनी मां का अकेलापन भी याद आता।
ना जाने अम्मा कैसे काम करती होंगी कितनी तंगहालत होंगे उनके ।
बुढ़िया दिन भर रोती रहती। इस हंगामे में सड़क कट गई।
करीब तीन दिन बाद ट्रेन कलकत्ता स्टेशन पहुंची। गौरा का दिल तेजी से धड़क रहा था।
वह प्लेटफॉर्म पर उतर गई और मंगरू का इंतजार करने लगी।
वृद्ध ने कहा – मैंने हर जगह देखा है, लेकिन मैंगरू कहीं नहीं है। शायद अब तक नहीं आया।
गौरा डर गई। फिर बूढ़ा बोला- चलो डेरे चलते हैं, उसे नहीं पता था कि हम कौन सी गाड़ी से आ रहे हैं।
ऐसे में मंगरू की राह ताकने का कोई?फायदा नहीं था।गोरा ने तांगे में बैठना ही सही समझा।।
यह पहली बार था जब गौरा गांव से बाहर आई थी, उसकी नजर इधर-उधर की चीजों पर टिकी थी।
अचानक एक सुंदर और विशाल भवन के सामने तांगा रुक गया।
गौरा नीचे उतरी और बहुत तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। वह मैंगरू से मिलने में जरा सी भी देरी नहीं सह सके।
तभी बुढ़िया ने पहली मंजिल के एक कमरे की ओर इशारा करते हुए कहा- यह मैंगरू का कमरा है।
कमरे में जाओ वो अंदर ही सो रहा होगा ।
कोने में चार-पांच बर्तन और चार-पांच बर्तन पड़े थे। उसने बाहर आकर बुढ़िया को बताया।
बूढ़ा बोला- मैंगरू काम पर गया होगा। शाम को लौटेंगे। यहां वह किराए पर रहता है।
मैंगरू को कमरे में न पाकर गौरा को थोड़ी निराशा हुई,
लेकिन शाम को मिलने का ख्याल आया तो वह मुस्कुराई और सफाई करने लगी।
वह कमरे में झाडू लगाता है, बर्तन धोता है। नहाने के बाद शाम होने का इंतजार करने लगी।
रास्ता देखा तो शाम हो गई थी, लेकिन मैंगरू का अब तक कोई अता-पता नहीं था।
कमरे में अंधेरा होने के कारण।गौरा को डर लगने लगा।
जब भी किसी की आवाज आती तो गौरा को लगता कि मैंगरू आ गया होगा, लेकिन दरवाजे पर दस्तक नहीं हुई।
कुछ देर बाद दस्तक हुई। गौरा दौड़ी और दरवाजा खोला।
एक बूढ़ा व्यक्ति गोरा के सामने खड़ा था।गौरा ने उनसे पूछा मंगरू अभी तक क्यों नहीं आया?हीं आया?
बुढ़िया ने कहा- मैं अभी-अभी मांगरू के ऑफिस से लौटा हूँ।
साहब ने बताया कि मैंगरू का तबादला कर दिया गया है।
मैंगरू ने साहब से कई अनुरोध किए लेकिन किसी ने उनकी एक नहीं सुनी और उन्हें दूसरी जगह भेज दिया।
मैं कार्यालय से उनका नया पता लाया हूं। कल सुबह मैं तुम्हें जहाज पर बिठाऊंगा, फिर तुम अपने मैंगरू के पास जाओ।
गौरा घबरा गई और बोली- जहाज में? कितने दिनों की होगी यात्रा?
वृद्ध ने कहा।कि इस काम में।कम से कम 8-10 दिन जरूर ही लगेंगे।आप इसके लिए चिंता नहीं करो।।
तय कार्यक्रम के अनुसार अगले दिन गौरा बुढ़िया के साथ मैंगरू जाने के लिए निकली।
बूढ़े ने उसे जहाज पर बिठाया और विदा किया। जहाज किनारे से दूर जा रहा था,
गौरा को लगा कि अब उसकी माँ, गाँव पीछे छूट रही है।
चारों तरफ पानी और पानी देख गौरा का मन अजीब हो रहा था।
अनजान जगह पर उसे मैंगरू कहाँ मिलेगा, यही सोचकर उसका दिल बैठ जाने वाला था।
जहाज पर कई महिलाएं और पुरुष सवार थे। गौरा उन्हें देख रही थी और सुन रही थी।
तभी उसकी नजर एक कोने में अकेली बैठी महिला पर पड़ी। गौरा ने हिम्मत से उससे पूछा- कहाँ जा रही हो दीदी?
यह सुनकर महिला की आंखें नम हो गईं। भावार्थ – मुझे नहीं पता कि मैं कहाँ जा रहा हूँ।
मैं वहीं जा रहा हूं जहां किस्मत मुझे ले जाए। आप कहां जा रहें हैं
गौरा ने कहा- मैं अपने मालिक के साथ हूं।
महिला ने झट से कहा- दीदी, कोई फुसलाकर लाया है। तुम यहाँ किसके साथ आए हो?
गौरा ने कहा- यहां तक एक वृद्ध व्यक्ति ने छोड़ा है । मैं अपने पति से मिलने कलकत्ता आई थी।
उस औरत ने गौरी से कहा कि एक दुबला पतलालंबा सा बूढ़ा होगा।जिसकी आंखें मोटी मोटी उभरी हैं।
गौरा- हाँ दीदी वही।
महिला ने कहा- दीदी, उसी दुष्ट ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी है। ईश्वर उनके सात पुत्रों को नर्क प्रदान करे।
उस पाखंड के कारण मैं किसी को अपना मुँह नहीं दिखा पा रही थी ।
अब मैं मिस्र को जा रही हूँ जहां मैं कड़ी मेहनत करके वहां रहूंगी ।
यह सब सुनकर गौरा का मुंह नहीं फटा का फटा ही रह गया । वह सोचने लगी कि अब मैं क्या करूँ?
उसे अपनी माँ, अपने गाँव, अपने दोस्तों की याद आने लगी। कुछ देर बाद हिम्मत से कहा- अब क्या करें दीदी?
महिला ने कहा- अब वहां पहुंचने के बाद ही पता चलेगा.
इतना कहकर वह जोर-जोर से रोने लगी और अपना दुखड़ा सुनाया।
गौरा ने हिम्मत दी तो महिला ने बताया कि उसके पति की शादी के तीसरे साल में ही मौत हो गई।
वह किसी तरह अपने पति के विचारों के साथ जी रही थी कि एक दिन पापी भेष बदलकर भीख मांगने आया।
उन्होंने सन्यासी का रूप धारण कर लिया था। मैं उसके जाल में फँस गया और आज मेरी यही दुर्दशा है।
इसने मुझे अपने पति से मिलवाने का लालच दिया।
मैं मूर्ख पति से मिलने की चाहत की इस छल-कपट की बातों में फंस गई और उसके साथ चली गई।
आगे की कहानी मुझे नहीं पता। अगले दिन जब मुझे होश आया तो मैं घर भी नहीं लौट पाई।
अब वह बूढ़ा मुझे यहां ले आया है और जहाज पर छोड़ गया है।
महिला की बातें सुनकर गौरा को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे रिएक्ट करे।
वह बिल्कुल चुप थी। मंगल से मिलने का सपना पल भर में टूट गया।
गौरा को इस हालत में देखकर महिला बोली- भगवान पर विश्वास और हिम्मत रखो बहन।
गौरा ने हिम्मत से कहा- मुझे अब तुम्हारा सहारा है, तुम और मैं दोनों अब साथ रहेंगे।
महिला कुछ नहीं बोली। दोनों एक-एक कर नीले आसमान की ओर देखने लगे।
कई घंटे बाद जहाज तट पर पहुंचा। सभी यात्री उतरने लगे।
समुद्र के दूसरे किनारे पर खड़ा एक आदमी।जांच से उतरने वाले सभी महिलाओं व पुरुष की नाम व पता लिख रहा था।
जैसे ही गौरा की नजर उस आदमी पर पड़ी इसके पैरों तले जमीन ही खिसक गयी।
उसके शरीर में एक चिंगारी सी दौड़ गयी।जिससे उसको जहाज में सवार लोगों की आवाज भी सुनाई नहीं दे रही थी।
गौरा के सामने एक सीन था, जिसकी उम्मीद उन्होंने छोड़ दी थी।
यात्रियों के नाम लिखने वाला किनारे पर खड़ा शख्स कोई और नहीं बल्कि मैंगरू था।
गौरा इस समय सातवें आसमान पर थी। उनकी खुशी छुपाई नहीं जा सकती थी।
मैंगरू ने हाथ बढ़ाया। गौरा ने कोई जवाब नहीं दिया। इसमें सफर के दौरान मिली महिला ने गौरा को कोहनी मार दी।
गौरा लड़खड़ा गई। मैंगरूa उसे पकड़ लेता है।
महिला – क्या हुआ ? क्या आप इस आदमी को पहचानते हैं?
गौरा ने उस महिला से कहा ये वही है जिनसे मिलने में इतनी दूर अकेले आयी हूँ ।
महिला ने कहा – अच्छा तो यह तुम्हारा पति है। क्या तुम अब मेरे साथ नहीं आओगी ? क्या तुम मुझे भूल जाओगी ?
गौरा ने कहा- क्या ऐसा हो सकता है? आपने मेरा साथ दिया है।
मैंगरू इन दोनों से दूर अपने काम में व्यस्त था। वह यात्रियों से जानकारी जुटा रहे थे।
गौरा कोने में खड़े मैंगरू को देख रही थी। कुछ देर बाद उनका काम खत्म हुआ और वह गौरा के निकट आ गया।
मंगरु ने गौरा से बिना उसको देखे ही पूछा की आप हो कौन और नाम और पता बताये अपना।
गौरा धीरे से मुस्कुराई और बोली- गौरा हमारा नाम है। मदनपुर, बनारस से आए हैं।
मैंगरू ने उसका हाथ थाम लिया और आंखों में आंसू लिए कहा- तुम यहां कैसे आए?
गौरा ने अपने आंसू पोछते हुए सदमे में कहा- तुमने फोन किया था तो मैं आ गई।
मैंगरू को समझ नहीं आया कि गौरा क्या कह रही है। उन्होंने कहा- मैंने सन्देश कब भेजा था?
खैर, मैं यहां पिछले 7 साल से कैद हूं। मैं चाहकर भी घर नहीं जा सकता था।
गौरा घबरा गई और बोली- तुमने मुझे लाने के लिए बूढ़े को नहीं भेजा?
मैंगरू ने कहा-बिल्कुल नहीं। गौरा का मन छोटा हो गया। उन्होंने इस जवाब की उम्मीद नहीं की थी।
गौरा ने गुस्से में कहा- मैं कल ही यहां से निकलूंगी। मैं तुम पर बोझ नहीं बनना चाहता।
मैंगरू ने कहा – अब तुम यहाँ से अगले पाँच साल तक नहीं जा सकते, गौरा। यहाँ यही नियम है।
गौरा ने कहा- तो ठीक है, मैं अलग रहकर अपने पेट का ख्याल रखूंगी, लेकिन मैं तुम पर बोझ नहीं बनूंगी।
मैंगरू ने कहा- गौरा तुम मेरे लिए कभी बोझ नहीं हो सकती। आप सती हैं, देवी हैं।
जिस बूढ़े ने तुम्हें बहकाया, उसने मुझे भी यहाँ भेजा है। मेरे साथ आओ, मेरे स्थान पर चलो।
वहीं आराम करो और फिर चीजें आगे बढ़ेंगी। आपके साथ यह महिला कौन है?
गौरा ने कहा- सखी बन गयी है । यात्रा के दौरान जहाज पर हम दोनों मिले थे।
इसका यहाँ कोई नहीं है, इसलिए यह मेरे पास रहेगी ।
मैंग्रो सहमत हो गया। तीनों लोग पैदल ही निकल गए।
तभी सामने से दो लम्बे कद के आदमी प्रकट हुए।
मैंगरू में आकर दोनों आदमियों ने कहा- आज से ये दोनों औरतें हमारी हैं।
मैंगरू के गुस्से का कोई ठिकाना नहीं था।
मैंगरू चिल्लाया और बोला- ये दोनों मेरे घर की औरतें हैं, उन पर नजर भी मत डालो।
दोनों आदमी खिलखिलाकर हंस पड़े। मैंगरू का गुस्सा और भी बढ़ गया।
तभी एक आदमी गौरा की तरफ बढ़ा और उसका हाथ पकड़ने की कोशिश करने लगा।
मैंगरू चिल्लाया – मत छुओ वरना अच्छा नहीं होगा।
दोनों युवक डर गए और बाद में देखने की धमकी देते हुए आगे बढ़ गए।
मैंगरू, गौरा और उसकी सहेली आगे बढ़ गईं।
मैंगरू ने कहा – इसलिए मैं कह रहा था कि यह जगह आप जैसी महिलाओं के लिए नहीं है।
अचानक एक अंग्रेजी सिपाही आ गया और मंगरु से बोलै हे नौकर ! ये दोनों आज से मेरे कमरे में रहेंगी।
मंगलू ने हाथ जोड़े। कहा- साहब! ये मेरे घर की औरतें हैं। उन्हें जाने दो
अंग्रेजी सिपाही ने कहा।कि झूठ बोलकर बहाने मत बना।और।गौरा को देखकर बोला।इसे सुबह।मेरे महल में भेज दे।
मैंगरू ने कांपते हुए सिर हिलाया, लेकिन तब तक अंग्रेज आगे बढ़ चुके थे।
जमादार का काम साहब की बातों का पालन करना था। मैंगरूको समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें।
अंत में सड़क खत्म हो गई है। सामने मज़दूरों के रहने के लिए मिट्टी के घर बनाए गए।
दर्जनों स्त्री-पुरुष बाहर बैठे थे। सब गंदी निगाहों से गौरा और सखी को देख रहे थे।
किसी तरह अपनी आंखें बचाते हुए मंगरू दोनों महिलाओं को घर ले गया और खुद दरवाजे पर बैठ गया।
कमरे के अंदर जब दोनों महिलाओं ने अपनी किस्मत को कोसा, तो मैंगरू दरवाजे पर बैठकर पहरा देता रहा।
किसी तरह रात निकल गई। अगले दिन किसी तरह कट गया।
रात करीब दस बजे दरवाजे पर दस्तक हुई। जब मैंगरू बाहर आया तो उसने देखा कि सिपाही सामने खड़ा है।
सिपाही ने कहा – चलो, साहब ने आपको बुलाया है।
मैंगरू ने कहा – भाई, आप हमारे देश के आदमी हैं। मुझ पर संकट आ गया है।
मदद करो, साहब को बताओ कि मैंगरू घर पर नहीं है।
सिपाही बोला नहीं नहीं साहब बहुत गुस्से में है तुमको मेरे साथ चलना ही होगा।
मैंगरू के पास कोई चारा नहीं था, वह सिपाही के पास चला गया।
मैंगरू को सामने देख साहब जोर-जोर से चिल्लाए-कहां है वो औरत? तुम कल उसे मेरे घर क्यों नहीं लाए?
मैंगरू ने हाथ जोड़कर कहा- यह मेरी पत्नी है सर।
साहब ने कहा – तब वह और कौन थी ?
मैंगरू- वो मेरी बहन है।
साहब ने गुस्से में कहा- हमें कुछ पता नहीं, तुमउन दोनों महिलाओ में से किसी को भी जल्दी लाओ।
मैंगरू साहब के पैरों पर गिर पड़ा और रोने लगा, लेकिन साहब का दिल नहीं पसीजा।
उसने आदेश दिया – जल्दी एक औरत ले आओ वरना तुम्हें कोड़े मारे जाएंगे।
मैंग्रो कोड़े मारने के लिए तैयार हो गया। साहब नशे में थे। उसने सोचा या इच्छा नहीं की।
उसने शिकारी को बाहर निकाला और कोड़े मारने लगा। मंगलू की चीख निकली।
साहिब उसे पीटता रहा, लेकिन वह अपने घर की महिलाओं को सम्मान देने को तैयार नहीं था। उसने जान देना ही बेहतर समझा।
इधर गौरा और सखी कमरे में बैठकर मैंगरू का इंतजार कर रही थीं।
मैंगरू के साथ जो हो रहा था, उसके बारे में उन्हें क्या पता था?
अचानक किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। जब मैंने इसे अपने कान से सुना, तो मेरा दिल मेरे मुंह पर आ गया।
यह मैंगरू की आवाज थी। गौरा दरवाजे की तरफ भागी।
मैंगरू की आवाज सुनकर वह उसके पास नहीं रही, फिर आवाज के पीछे भागी।
गेट खुला था। गौरा है कोई, किसी ने आवाज देना शुरू कर दिया, लेकिन जवाब नहीं मिला।
वह अंदर चली गई। मैंगरू उसके सामने खुले बदन के साथ खून से लथपथ खड़ा था और अंग्रेज उस पर ताना मार रहा था।
गौरा यह सहन नहीं कर सकी। वह दौड़ी और मैंगरू को गले से लगा कर बोली- उनके बदले में जितना चाहो मुझे मार दो, लेकिन उन पर रहम करो।
अंग्रेज खुश हुआ और गौरा से बोला – अगर तुम मेरे साथ यहीं रहोगी तो मैं इसे छोड़ दूंगा।
गौरा बहुत असहाय महसूस कर रही थी। कुछ न बोला वहाँ मैंगरू दर्द से कराह रहा था।
वह जिस साथी के लिए यह सब कर रहा था, उसकी आंखों के सामने उसे छोड़ रहा था।
गौरा अपने मन पर काबू करके कहा की मैंने आपकी शर्त मान ली है
मंगरु के बिल्कुल ठीक होने पर में आपके साथ चलूंगी और अंग्रेजी सिपाही ने मान ली
उन्होंने मैंगरू पर अत्याचार बंद किया और आरक्षक को आदेश दिया
गौरा ने अपने मन बेकाबू रखा।और अंग्रेज सिपाही से कहा कि मुझे आपकी शर्त मंजूर है।।
गोरा ने कहा।मैं मंगरू के बिल्कुल ठीक होने के बाद ही तुम्हारे पास।आ सकती हूँ।
उसने मंगरू को मारना बंद किया और डॉक्टर के यह ले जाने को कहा ।
मंगरू को अस्पताल ले जाने।के समय गौरा भी उसके साथ अस्पताल गई थी।
जब तक मंगरू का इलाज चला।गौरव भी उसके साथ साथ ही रही।
चार दिनों के इलाज के बाद मंगरू ने आंखें खोली।
गौरा को अपने कथन के अनुसार मंगरू के इलाज के बाद उस अंग्रेज के साथ जाना था।
गौरा को कुछ नहीं सुझा उसने अपने आप को बचने अस्पताल के पास की में कूदने की सोच ली गौरा जाकर उसमें कूद पड़ी।
आनन-फानन में एक अस्पताल कर्मचारी दौड़ा मंगरू के पास आया और गौरा के नदी में कूदने की सूचना दी।
मंगरू की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। उसे कुछ समझ नहीं आया।
वह नदी के सामने दौड़ा और कूद गया। जो कभी साथ नहीं रह सकते थे,
अब दोनों साथ-साथ चल रहे थे परलोक की यात्रा में।
Moral of the Story कहानी से सबक:
हम शूद्र कथा से सीखते हैं कि व्यक्ति को अपने मन को साफ और सच्चा रखना चाहिए।
अगर किसी भी काम को करने के पीछे आपकी नीयत अच्छी हो तो नियति आपका कभी बुरा नहीं करेगी।