Hindi Kahani | Ek Rupay Ka Ghoda | एक रूपए का घोडा

Ek Rupay Ka Ghoda Kahani In Hindi

 

एक रूपए का घोडा | Hindi Kahani

Hindi Kahani: एक बार की बात है,जब तेनाली राम महाराज से किसी बात पर नाराज हो गए।

इसी  वजह से कई दिन तक दरबार में नहीं आये।

इस बात से तेनाली राम की पत्नी रमा को बहुत गहरा आघात पहुँचा।

एक दिन तेनाली राम किसी काम से घर से बाहर गए हुए थे तभी उनकी अनुपस्थति में एक महात्मा उनके घर पधारे।

महात्मा बहुत ही पहुंचे हुए तपस्वी भी थे उन्होंने कठिन तप करके अनेक शक्तियाँ प्राप्त की थी।

महात्मा से मिल कर तेनाली राम की पत्नी बड़ी प्रसन्न हुई।

और उन्होंने सोचा की इनके कदम मेरे घर में पड़ने से मेरा घर पहले की तरह खुशियों से भर जाएगा।

मुझे इनकी  सेवा करनी चाहिए।”

रमा ने बहुत सारे पकवान बनाए और तपस्वी को स्वादिस्ट भोजन करवाया था।

और उनकी बहुत सेवा की जिससे वह तपस्वी बहुत खुश हो गए।

और वह जाते समय तेनाली राम की पत्नी रमा से बोले, “बेटी तुम्हारी सेवा से मैं बहुत खुश  हूँ।

मैं तुम्हे यह चमत्कारी जल देता हूँ।

सबसे पहले सुबह इस पानी से शिव का अभिषेक करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।

लेकिन एक बात याद रखें कि इस जल की एक बूंद भी शिव अभिषेक से पहले जमीन में नहीं गिरनी चाहिए।

तो इसका बुरा असर तुम पर पड़ेगा।

अगली सुबह तेनाली राम की पत्नी रमा उस जल के लोटे को लेने के लिए जाती है और लोटा जमीन पर गिरा देख कर एक दम सन्न रह जाती है।

उसने देखा की लोटा जमीन पर गिरा हुआ और उसका जल आस पास जमीन पर फैला हुआ है।

अब तो रमा सोच में पड़ गयी और धीरे धीरे शरीर बीमारी से ग्रस्त हो गया।

एक रूपए का घोडा की कहानी

ये सब देख कर तेनाली राम भी बहुत धदुखी हुए और नित प्रतिदिन अपनी पत्नी रमा से पूछते है की ऐसा क्या कारण है।

जिसकी वजह से तुम इतनी बीमार हो गयी।

रमा उनको कुछ न बताती और अकेले ही अकेले शती रहती।

एक रोज तेनाली राम के अधिक बार पूछने पर उनकी पत्नी ने साधु महाराज बाला वृतांत सुनाया।

ये सब सुनकर तेनाली राम भी बहुत दुखी हुए।

परन्तु उन्होंने अपनी को वचन दिया की वह सब कुछ पहले की भाति सब ठीक कर देंगे

ऐसा कह कर वह वहा से चल दिए और उन्होंने साधु को खोज लिया।

उनके पास गए और बोले हे साधु में उस स्त्री का पति हु।

जिसकी सेवा और आदरभाव से आपने प्रसन्न हो कर आपने जल दिया था।

शिवलिंग पर अर्पण करने के लिए परन्तु वह जल तो धरती पर फैल गया था उसी दिन से मेरी पत्नी रमा बहुत बीमार है।

आप उसको ठीक करने कोई उपाय बताये साधु महारज ने तेनाली राम की बात सुनी।

और बोले आप ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन करा क्र दान दो तुम्हारी पत्नी पहले की भाँति स्वस्थ्य हो जाएगी।

साधु महाराज की बात सुन कर तेनाली राम वह से चल दिया और रस्ते में सोचने लगा की मेरे पास तो इतना धन भी नहीं है।

जो में ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन करा कर दान दे सकू तेनाली राम ने सोचा के अब तो राजा से भी सहायता न मिलेगी।

ये सब सोच तेनाली राम अपने नगर जा पहुंचा नगर पहुंचने के बाद तेनाली राम वह के सबसे बड़े व्यापारी के पास गया और उनसे सौ सोने की मुद्रा उधर स्वरूप माँगी।

 

एक रूपए का घोडा की कहानी में आगे क्या हुआ

मोहन व्यापारी – सौ मुद्रा तो बहुत अधिक है इतनी मुद्रा में तुम्हें उधार नहीं दे सकता है।

तेनालीराम – मोहन व्यापारी से कहा की तुम मुझे सौ मुद्राये दे दो में महाराज की तरफ से जो सफ़ेद घोड़ा मुझे मिला था।

उसे बेचकर तुम्हारे पैसे चूका दूंगा।

मोहन व्यापारी सोचने लगा की राजा की तरफ से मिले घोड़े का मूल्य बहुत अधिक होगा

और उसने तेनाली राम से कहा की घोड़े का जो मूल्य मिलेगा वो मेरा होगा।

तेनाली राम मोहन व्यापारी की बात सुनकर थोड़े मुस्कुराये।

और उन्होंने मोहन व्यापारी से सौ मुद्राएं ली और वहा से चल दिए।

घर आकर तेनाली राम ने ग्यारह ब्राहम्णो को भोजन का निमंत्रण भेजा और खुद भोजन की तैयारी में लग गए।

तेनाली राम और उनकी पत्नी ने ग्यारह ब्राहम्णो को भोजन कराया।

और उन्हें पुरेपूरी आदर के साथ बहुत सा दान देकर विदा किया।

साधु महाराज के बताये उपाय करने के कुछ दिन बाद ही उनकी पत्नी रमा पहले जैसे ही स्वस्थ्य हो गयी।

बहुत समय बीत जाने के बाद मोहन व्यापारी ने उन्हें टोका अपने पैसे के लिए तेनाली राम ने कहा चलो ये घोड़ा बेचने चलते है।

अब तो मोहन व्यापारी बहुत अधिक खुस हुआ और मन ही मन सोचने लगा की इस घोड़े की कीमत कम से कम चार हजार स्वर्ण मुद्रा की होगी।

और मुझे तो इसमें अधिक मुनाफा होगा।

ऐसा सोच वह तेनाली राम के साथ घोड़ा बेचने के लिए चल दिया और दोनों बाजार में जाकर घोडा बेचने के लिए बैठ गए।

 

एक रूपए का घोडा की कहानी हिंदी में

तेनालीराम अपने घोड़े के साथ साथ अपने खरगोश को भी बेचने के लिए ले गए थे।

और उन्होंने ने दोनों जानवरों की कीमत कुछ इस तरह तय की थी के घोड़े की कीमत तो एक मुद्रा है।

परन्तु घोडा खरीदने लिए खरगोश को भी खरीदना होगा।

जिसकी कीमत चार हजार रूपये मुद्रा थी।

जैसे ही बाजार में ये बात फैली की एक रुपए में सफ़ेद रंग का उसी नगर के राजा का पुराना घोड़ा मिल रहा है।

तो बहुत से लोग उस घोड़े को खरीदने के लिए तेनालीराम के पास आये।

तो उन्हें पता चला की घोड़े की कीमत तो एक मुद्रा है।

परन्तु घोड़ा खरीदने के लिए खरगोश जरूर ही खरीदना पड़ेगा जिसकी कीमत चार हजार मुद्रा है।

तो एक ग्राहक आया उसे घोडा बहुत पसंद आया।

उसने एक मुद्रा घोड़े के और चार हजार मुद्राएं दे कर खरगोश को खरीद कर ले गया।

ये सारा वृतांत देख कर मोहन व्यापारी मन ही मन बड़ा ही दुखी हुआ।

तेनालीराम ने व्यापारी को घोड़े की कीमत एक मुद्रा दे दी और चार हजार मुद्राओं के साथ अपने घर आ गए।

 

तो दोस्तों आपको Hindi Kahani | Ek Rupay Ka Ghoda | एक रूपए का घोडा की कहानी कैसी लगी हमें कमेंट करके बताएं।