महात्मा बुद्ध और आम का पेड़
एक बार महात्मा बुद्ध किसी आम के पेड़ के नीचे बैठ कर संध्या कर रहे थे।
वो पेड़ बहुत ही घना और आम के फलों से लदा हुआ था।
कुछ बच्चे संध्या होने पर ही चुपचाप आकर उस पेड़ से आम तोड़ते थे।
प्रतिदिन की तरह बच्चे आज भी आम तोड़ने आ गए।
वे आम तोड़ने के लिए उस पेड़ के पास आये और आम तोड़ने के लिए पत्थर मार कर आम तोड़ने लगे।
सारे बच्चे पेड़ के आस पास ही घूम घूम के आम खा रहे थे और मौज मस्ती कर रहे थे।
उन बच्चो के ये नहीं पता था की इस पेड़ के निचे दूसरी तरफ महात्मा बुध अपनी संध्या में लीन है।
बार बार पत्थर मर क्र फल तोड़ते तोड़ते एक बार एक पत्थर महात्मा बुद्ध के जा लगा।
सहसा उनकी आँख खुली और उनकी संध्या टूट गयी।
ये सब देख कर सारे बच्चे उनके पास आ गए सहमे सहमे से खड़े हो गए।
महात्मा बुद्ध ने बच्चों की इस हालत में देख कर उन बच्चों को अपने पास बुलाया।
उन्होंने बच्चों से कहा कि बच्चों डरो नहीं।
बच्चे तो डर के मारे महात्मा बुद्ध से माफ़ी माँगने लगे।
तो ये सब सुनकर महात्मा बुद्ध की आँखों से आँसू बहने लगे।
बच्चों ने महात्मा बुद्ध से उनकी आँखों में आँसू आने का कारण पूछा उन्होंने बच्चो को बताया।
की तुमने पेड़ को पत्थर मारा तो पेड़ ने तुम्हें आम दिया और तुमने मुझे पत्थर मारा तो मैंने तो तुम्हें कुछ नहीं दिया।
इसलिए मेरी आँखो में आँसू है।