यह कहानी उन दिनों की है जब झज्जर शहर महेंद्रगढ़ का हिस्सा हुआ करता था।
उस दौरान भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में विदेशियों द्वारा हमले किये जाते थे ।
पानीपत, रोहतक और दिल्ली जैसे बड़े बड़े शहर अधिक जोखिम में थे।
उन दिनों नवाब झज्जर में बुआवल तालाब की मरम्मत करवा रहे थे।
ताकि मुसीबत के समय रेवाड़ी के लोगों को पानी की किल्लत का सामना न करना पड़े।
तभी गुप्तचरों ने ये सूचना दी की दुर्रानी अपनी सेना के साथ हमला करता हुआ रेवाड़ी की और कूच कर रहा है।
इस बात का पता चलने पर नवाब ने अपने वीर सैनिकों और वजीरों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की।
बैठक का मुद्दा यह था कि अगर दुर्रानी की सेना ने झज्जर पर हमला किया तो उससे कैसे निपटा जाएगा।
और अगर हमले के दौरान रोहतक या रेवाड़ी ने मदद मांगी तो क्या करना सही होगा?
बैठक में मौजूद सभी लोगों ने कहा कि रियासत में सभी को हमले की सूचना दी जाए।
और पूरी तैयारी की जाए हमले का जवाब ऐसा होना चाहिए की हमारे समीप की सभी रियासते भी हमारी सहायता के लिए आगे आये।
उसी दिन राज्य में यह घोषणा की गई है कि यदि कोई हमला होता है,
तो कमजोर, बीमार, महिलाएं और बच्चे जंगल में छिप जाएंगे और सैनिकों का समर्थन करेंगे।
शेखचिल्ली ने भी यह घोषणा सुनी। शेखचिल्ली थोड़ा परेशान हो गया, क्योंकि उसकी पत्नी थोड़ी मोटी थी।
उसने सोचा कि अगर हमला हुआ तो उसकी पत्नी जंगल में कैसे पहुंचेगी।
शेखचिल्ली के मन में अजीबोगरीब ख्याल आने लगे।
फिर शेख चिल्ली अपने आप से बुदबुदाने लगा की , ‘मैं क्या बकवास सोच रहा हूँ?
तब उसे लगा कि इस बार कोई बड़ी मुसीबत आ गई है। मैं बेगम को इस तरह मौत के मुँह में नहीं जाने दे सकता हूँ ।
अचानक उसके दिमाग में एक ख्याल आया कि कितना अच्छा होगा अगर उसे कहीं से उड़ता हुआ कालीन मिल जाए।
फिर उसने अपने आप से कहा, ‘नवाब साहब ने मुझे एक घोड़ा दिया था।
जिसकी सहायता से में बेगम की जान बचाने में कामयाब हो सकता हूँ।
‘ दुर्रानी की सेना हाथ मलती रहेगी। तब उसने सोचा कि आखिर घोड़ा भी तो एक जानवर ही है।
क्या वह मेरी पत्नी का भार वहन कर पाएगा? कहीं बीच रास्ते में ही उनकी मौत हो गई, फिर क्या होगा?
अगर तब बेगम को दुश्मनों की सेना घेर लेती तो बेगम को कैसे बचाया जा सकता था ?
माना बेगम के पिता एक मजबूत सैनिक थे और अच्छी तलवारबाजी जानते थे,
लेकिन बेगम तलवार चलाना नहीं जानती थीं। मेरी पत्नी केवल अपनी जीभ का उपयोग करना जानती है।
कम से कम अगर उसके पास भी यह कला होती तो आज वह अपनी जान बचा लेती।
इसमें शेखचिल्ली के मन में आया कि अगर बेगम तलवार चलाना भी जानती है तो तलवार कहां से आएगी?
अब अल्लाह मियां आसमान से तलवार नहीं गिरने देगा ताकि शेख चिल्ली की पत्नी इसी से दुर्रानी की गर्दन काट दे।
अगर ऐसा हुआ भी तो बेगम वाकई दुर्रानी की गर्दन काट देगी और उस दिन दुर्रानी की सेना में डर पैदा हो जाएगा।
उसके सब सैनिक मैदान छोड़कर भाग जाएंगे।
यह सब होता देख नवाब चौंक जाएगा और अपनी सेना से पूछेगा कि यह चमत्कार किसने किया है?
तब सेना उन्हें बताएगी कि एक मोटी औरत ने यह कारनामा किया है, उसने दुर्रानी का सिर कलम किया है।
उस मोटी औरत के कारण ही हमारा उद्धार हुआ है।
यह सुनकर नवाब बहुत खुश होंगे और पूरे सम्मान के साथ महिला को अदालत में लाने का आदेश देंगे ।
यह भी संभव है कि नवाब खुद बेगम की तलाश में निकल पड़े।
जैसे सम्राट अकबर नंगे पांव वैष्णो देवी के दर्शन करने गए।
तभी वे दुर्रानी के खून से लथपथ बेगम की तलवार को देखेंगे।
उसे देखते ही, नवाब उनके सामने झुक जाता और सेवा करने का मौका भी मांग लेंगे।
नवाब बेगम को पूरे सम्मान के साथ महल में लाएगा और बेगम के पैरों की धूल माथे पर लगाएगा।
उन्होंने बेगम के पैरों को चूमने के लिए वहाँ सभी उपस्थित लोग पूछेंगे।
मुझे भी ऐसा करने के लिए कहा जाएगा। मैं अपनी पत्नी के पैर कैसे चुंबन कर सकते हैं?
इसलिए मैं मना कर दूंगा। नवाब मुझ पर चिल्ला कर भी बोलेंगे परन्तु में मना ही करता रहूंगा।
इस पर नवाब नाराज हो जाएगा और सैनिकों से उसे जेल में डालने के लिए कहेगा।
तभी नीचे गिरने की आवाज आई।
जब शेखचिल्ली की आँख खुली तो उसने देखा कि वह खाट से गिर गया था
और नीचे सब्जी काट रही बेगम के चरणों में गिर पड़ा।
गिरते ही बेगम रो पड़ी, ‘बेगम ने कहा कीअच्छा हुआ की तुम बगल में गिरे हो नहीं तो तुम्हारी गर्दन शरीर से अलग हो जाती।
‘ शेखचिल्ली ने उसका माथा चूम लिया।
अब वह दुर्रानी के हमले से भी अधिक बेगम के पैर चुंबन से डरता था।
मेरे मन में भी यही सवाल आ रहा था कि क्या सच में मुझे ऐसा करना पड़ा?
Moral of the storyकहानी से सीखें:
विचारों की दुनिया बनाने की तुलना में वर्तमान में जीना सीखना बेहतर है।