राजा भोज सिंहासन पर बैठ गए तो जल जाएंगे पुतली बोली रुकिए राजा इस सिंहासन पर केवल विक्रम जैसा बुद्धिमान राजा ही बैठता है।
राजा भोज ने पूछा कैसे थे राजा विक्रम पुतली ने बात शुरू की
एक बार आधीरात राजा विक्रम वेश बदलकर नगर चर्या देखने के लिए निकलेगी।
वहाँ उन्होंने देखा कि मंत्री के घर से 16 वर्ष की एक कन्या निकली और जल्दी जल्दी चलने लगी।
राजा ने सोचा इतनी रात को यह कन्या कहा जा रही होगी।राजा विक्रम अदृश्य होने की विद्या जानते थे।
वे अदृश्य होकर मंत्री की पुत्री के पीछे पीछे चलने लगीं। मंत्री की पुत्री नगर सेठ के घर के पास आयी।
नगर सेठ के घर का दरवाजा खुला दरवाजे में सेठ का पुत्र दिखाई दिया।
मंत्री की पुत्री बोली वादे के अनुसार मैं आ गयी।नगर सेठ के पुत्र ने कहा तुम्हारे प्यार की परीक्षा हो गयी,
अब तुम अपने घर लौट जाओ।मंत्री की पुत्री बोली सवेरे लौट जाऊंगी,
इस समय तो मैं यहीं रहूंगी नगर सिंह के पुत्र ने कहा, विवाह के पहले इस तरह रात में मेरे घर पर रहना ठीक नहीं है।
कहीं राजा को मालूम हो गया तो हमें फांसी पर चढ़ा देंगे।
मंत्री की पुत्री ने गर्दन ऊंची उठाते हुए कहा, मैं राजा की ज़रा भी परवाह नहीं करती
, मैं चाहूं तो राजा का सिर काट ले आओ।यह सुनकर सेठ का पुत्र आवेश में आकर बोला इतना ज्यादा अभिमान
तुमने कहा है तो अब राजा का सिर लेकर ही यहाँ आना।इससे पहले मुझे अपना मुख मत दिखाना।
मंत्री की पुत्री का भी आत्मसम्मान आहत हुआ। ठीक है, ठीक है, कहती हुई, पैर पटकती, गुस्से से लाल पीली होकर चली गयी।
यह सुनकर राजा विक्रम भी मुस्कुराएँ और आगे चले।
राजा विक्रम थोड़ा आगे गए।तभी एक घर में हो रही बातचीत उनके कानों में पड़ी।माँ कह रही थी बेटा अब तुम बड़े हो गए हो।
अब तुम्हें अपने पिता का बदला लेना चाहिए।बेटा बोला किस बात का बदला माँ?
माँ ने कहा तुम्हारे पिता ने राजमहल में चोरी की थी इसके लिए राजा विक्रम ने उन्हें सूली पर चढ़ा दिया था।
अब तुम जवान हो गए हो।तुम राजा विक्रम का सिर काट ले आओ और अपने पिता की मौत।
मौत का बदला बेटा तुरंत बोल उठा जब तक राजा विक्रम का सिर ना काट लाऊंगा ।
तब तक मैं अन्न जल ग्रहण नहीं करूँगा। राजा विक्रम फिर मुस्कुराए और मन ही मन बोले क्या बात है?
आज दो लोग मेरा सिर काटने के लिए उतावले हो रहे हैं।
राजा ने सोचा मेरा सिर काटने के लिए मंत्री पुत्री क्या योजना बना रही है, जाकर देखू तो सही
।यह सोचकर राजा अदृश्य रूप में मंत्री पुत्र के घर गए तो मंत्री पुत्री पूजा की थाली तैयार कर रही थी।
वहाँ पूजा की थाली लेकर चली।राजा विक्रम भी अदृश्य रूप में उसके पीछे पीछे चलें।
मंत्री की पुत्री शमशान के पीछे वाले जेट मंदिर में गयी वहाँ एक अवधूत रहता था।
अवधूत एक विद्या जानता था। मंत्री की पुत्री अवधूत के पैर छूकर बोली महाराज मुझे राजा विक्रम का सिर काटकर लाना है।
इसके लिए मुझे कोई उपाय बताइए?और उसने उसे बहुत समझाया कि ऐसा पाप नहीं करना चाहिए
मंत्री की पुत्री कैसे मान जाती? अंत में और अवधूत ने उसे एक जादुई गोटिका दिखाकर कहा एक शर्त पर मैं यह जादुई गुटका तुम्हें दूंगा,
कल सवेरे ही मुझे यह गुटिका वापस मिल जानी चाहिए मंजूर है मंत्री की पुत्रीबोली मंजूर है।
अवधूत ने उसे वह जादुई गोटिका दी और कहा इसको टीका तो मुँह में रखोगी तो जहाँ चाहोगी वहाँ एक क्षण में ही पहुँच जाओगी।
रास्ते में तुम्हे कोई देख नहीं सकेगा।बाकी का काम तुम्हें अपने बुद्धि से करना हैं।
मंत्री की पुत्री टीका लेकर खुश होती हुई वहाँ से चल पड़ी, उसी समय चोर का बेटा भी अवधूत के पास आया
और उसके पैर छूकर बोला महाराज मुझे राजा विक्रम का सिर काटकर ले आने का कोई उपाय बताइए?
अद्भुत ने चोर के बेटे को भी ऐसा पाप न करने के लिए बहुत समझाया पर उसके सिर पर पिता का बदला लेने का भूत सवार था,
इसलिए उसने भी अवधूत की बात नहीं मानी और अवधूत ने सोचा आज क्या बात है?
दो लोग राजा विक्रम का सिर काटने के लिए तत्पर हैं।
अवधूत ने चोर के बेटे को मंत्र से सिद्ध किए हुए चावल के दाने दिए और कहा, ये दाने मुट्ठी में रखोगे तुम्हें कोई देख नहीं सकेगा।
बाकी का काम तुम्हें अपनी बुद्धि से करना है।
इधरमंत्री की पुत्री टीका मुँह में रखकर राज्यपाल के झरोखे के पास से गुजर रही थी।
तभी उसने देखा कि नगर का निर्भयदास नाम का एक नौजवान सज धजकर झरोखे के नीचे खड़ा था और बड़बड़ा रहा था।
आज मुझे रानी नहीं मिली तो मैं काशी जाकर आरे के नीचे कट जाऊंगा।
मंत्री की पुत्री ने यह सुना और उसके मन में कुछ विचार सूझा।
निर्भयदास के नजदीक के आसपास एक नजर डाली।
फिर धीरे से बोलीं ताकि कोईसुन न ले
युवा तुम्हें रानी से मिलना है ना तो मैं तुम्हें एक उपाय बताती हूँ।
यह सुनकर निर्भयदास बहुत प्रसन्न हुआ।
मंत्री की पुत्री बोली पर एक शर्त है।एक क्या यदि रानी मिलती है तो शर्तें मुझे मंजूर है, जल्दी से उपाय बताओ।
निर्भय दास ने कहा मंत्री की पुत्री ने अपनी शर्त बताई
लो जादुई गुटिका इसे मुँह में रखकर तुम छठ भर में राजमहल में पहुँच जाओगे और रास्ते में तुम्हे कोई देख भी नहीं सकेगा।
तुम राजा के पास पहुँच जाओ।और राजा का सिर उड़ा दो, बाद में आराम से रानी से मिल लेना
और तुम्हें राजा का सिर्फ मुझे देना होगा और यह गुटिका भी मुझे लौटानी होगी।
पर निर्भय दास ने राजमहल में राजा के कमरे में जाने के बदले रानी निवास में जाने का निश्चय कर जादुई गोटिका मुँह में रखी।
तुरंत ही निर्भयदास सीधा पहुँच गया, सोई हुई रानी के पलंग के पास।
निर्भयदास सोये भी रानी के मुँह की ओर देखता रहा कैसा चन्द्रमा जैसा सुंदर मुख है
रानी का उसी समय चोर के पुत्र ने भी तलवार के साथ रानी के कमरे में प्रवेश किया।
उसे लगा राजा विक्रम रानी के पास बैठे है और रानी का बड़ा निहार रहे हैं पिता की मौत का बदला लेने का इससे अच्छा मौका शायद ही मिले।
यह सोचकर चोर पुत्र तुरंत तलवार दान कर निर्भयदास की ओर लपका और उसे ही राजा समझकर एक ही बार में उसका सिर उड़ा दिया।
कटा हुआ सिर कपड़े में लपेटा और उसे लेकर घर लौट आया।
यह देखकर माँ ने बेटे को शाबासी दी। फिर चोर पुत्र ने जंगल में जाकर निर्भयदास का सिर जमीन में गाड़ दिया।
इधर, निर्भयदास की चीख सुनते ही रानी चौक कर उठ बैठी और देखा
तो उनसे बिना सिर का धड़ रानी ने सोचा कि किसी को यह मालूम हो गया तो मेरी इज्जत का क्या होगा?
आप रानी की चिंता की सीमा न रही। उसने तुरंत अपनी अंतरंग दासी को बुलाया,
दासी ने परिस्थिति को देखकर तुरंत निर्णय लिया।
उसने बिना सिर वाले धड़ को एक बोरे में भरकर उसे नदी में फेंकने के लिए अन्य दासियों को रवाना किया।
अंधेरी रात झींगुर बोल रहे थे चमगादड़ और उल्लू की आवाजें आ रही थी।
जोर जोर से कुत्ते रो रहे थे, ।
दासियों को डर लगने लगा इसलिए दी के किनारे तक जाने की दासियों की हिम्मत नहीं हुई।
उन्होंने एक पेड़ के बड़े कोटर में बोरा छिपा दिया और जल्दी जल्दी नगर की ओर लौट गई।
राजा विक्रम अदृश्य होकर यह सारा खेल देख रहे थे।
राजा विक्रम जंगल में गए निर्भयदास का जमीन में गड़ा हुआ सिर उन्होंने बाहर निकाला और उसके खुले मुँह से वह जादुई गोटिका निकाली
और जमीन में गाड़ दिया।
इधर मंत्री की पुत्री राजपाल के झरोखे के नीचे राह देखती खड़ी थी।
निर्भयदास नहीं आया मंत्री की पुत्री को जादुई गुटिका न ही वापस मिली ना ही राजा का कटा हुआ सिर
मंत्री की पुत्री फिर श्मशान घाट लौटकर अवधूत को सारी बात बता दी
मंत्री की पुत्री की बात सुनते ही अवधूत चीखने चिल्लाने लगा, कल मेरी मृत्यु होने वाली है।
रेवा नदी के किनारे मरने की मैने प्रतिज्ञा की है, अरे जादुई गुटिका के बिना मैं रेवा के किनारे कैसे जा सकूंगा?
अरे मेरी मृत्यु खराब हो गयी। इधर मंत्री की पुत्री के पश्चाताप की आग में जल रही थी
उसने सोचा, अरे मेरे कारण और अवधूत की प्रतिज्ञा अधूरी रहेंगी।
मैं भी अब अन्न जल छोड़ देता हूँ और प्राण त्याग देता हूँ
इधर पति की मौत का बदला लेने के बाद चोर पुत्र की माँ को बहुत पछतावा होने लगा।
दीन दुखियों पर किए हुए राजा विक्रम की उपकार उसे याद आने लगे ।
उसे लगा लाखों लोगों के पालनहार को मैने इस तरह मरवा डाला विलाप करती हुई बोली क्या हो सकता है मेरे ऐसे पाप का प्रायश्चित?
अब मैं भी अन्य जल त्याग और शरीर छोड़।माँ को विलाप करते हुए देखकर बेटे को भी पछतावा हुआ।
पाप का प्रायश्चित करने के लिए माँ यदि इस तरह प्रायश्चित तो फिर मुझे भी जीवित रहकर क्या करना है?
बेटे ने भी अन्य जल छोड़ दिया। इधर निर्भयदास के माता पिता की चिंता की सीमा न रही।
हमारा जवान बेटा कहाँ खो गया होगा?जब तक बेटा न लौट आए तब तक उन्होंने भी अन्य जल का त्याग कर दिया।
नगर सेठ के पुत्र को इन सारी बातों का पता चला तब उसने सोचा इन सबका कारण मैं ही हूँ
मेरे कारण ही रानी, मंत्री, पुत्री, चोर पुत्र और उसकी माँ, निर्भयता के माता पिता ये सभी अपने जल छोड़कर रात जागने के लिए तैयार हुए हैं।
अब मुझे भी जीवित रहकर क्या करना है? उसने भी अन्न जल का त्याग किया और मरने का संकल्प किया।
यह सब देखकर राजा विक्रम बहुत दुखी हुए , पर बाद में उन्होंने सभी के उपवास छुड़वाने का निश्चय किया।
सबसे पहले राजा विक्रम चोर पुत्र के घर गए।अपना परिचय दिया। राजा विक्रम को जीवित देखकर माँ बेटा दोनों बहुत प्रसन्न हुए।
राजा ने इस तरह माँ बेटे का उपवास छुड़वाया।फिर राजा विक्रम मंत्री पुत्र के पास गए।
उसे जादुई गुटिका दिखाकर कहा यह जादुई गुटिका लौटा दें, जिससे वह छड़ भर में ही रेवा के किनारे पहुँच जाएगा।
फिर राजा ने मंत्री पुत्री का अन्न जल का उपवास छुड़वाया।
तब भी राजा को पता चला कि रानी ने भी अन्न जल का त्याग कर दिया है और इसका कारण भी कोई नहीं जानता।
राजा तुरंत रानी के पास रोते रोते रानी ने सारी बात राजा से कहीं।
फिर उसने कहा मेरे पलंग पर कोई पराया पुरुष बैठाउसका मुझे बाप लगा
इसलिए मैने अन्न जल का त्याग किया है।
राजा ने रानी को समझाया पतिव्रता नारी को ऐसा कोई पाप नहीं लगता, इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है।
यह कहकर राजा ने रानी का उपवास छुड़वाया। फिर राजा विक्रम अवधूत के पास गए।
उन्होंने रथों को अपना परिचय देते हुए कहा ये तपस्वी अपने दुख का कारण बताइए और अवधूत ने कहा।
कल मेरी मृत्यु होने वाली है। मैने रेवा नदी के किनारे मरने की प्रतिज्ञा की हुई है, पर मेरे पास जादुई गुटिका नहीं है,
इसके बिना मैं किस प्रकार रेवा के किनारे पहुंचूंगा? राजा विक्रम ने हुडको सारी बात बताई और उसे जादुई गोटिका दी
और धूप जादुई गुटिका पाकर बहुत खुश हुआ।राजा विक्रम ने कहा बेचारे निर्भयदास की बिना कारण मृत्यु हो गई,
अब उसे कैसे जीवित किया जाए?अवधूत ने कहा मैं संजीवनी विद्या जानता हूँ, मैं उसे जीवित करूँगा।
राजा विक्रम और अवधूत जंगल में गए।पेड़ के कोटरधड़ और जमीन में गड़ा हुआ उसका सिर बाहर निकाला।
इस धड़ पर सिर जमाया औरअवधूत ने संजीवनी मंत्र से निर्भयदास को जीवित किया।
अवधूत ने राजा से विदा ली और इच्छा मृत्यु प्राप्त करने के लिए जादुई गुटिका की मदद से रेवा के किनारे चला गया।
फिर राजा विक्रम ने मंत्री की पुत्री तथा नगर सेठ के पुत्र का धूमधाम से विवाह करवा दिया।
जय नगरी में आनंद ही आनंद छा गया। कहानी समाप्त कर पुतली ने कहा।
ऐसे बुद्धिमान थे राजा विक्रम और वह तुरंत आकाश में तो यह थी आज की कहानी।