Panchtantra ki kahani in hindi:नेवला और ब्राह्मण की पत्नी की
बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में देवदत्त नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी देवकन्या के साथ रहता था।
दोनों के कोई संतान नहीं थी। अंत में, कुछ वर्षों के बाद, उनके घर में एक प्यारे बच्चे का जन्म हुआ।
ब्राह्मण कीपत्नी अपने बच्चे से बहुत प्यार करती थी। एक दिन की बात है
कि एक ब्राह्मण की पत्नी देव कन्या को अपने घर के बाहर एक नेवले का छोटा बच्चा मिला।
उसे देखकर देव कन्या को उस पर दया आई और वह उसे घर के अंदर ले गई और उसे अपने बच्चे की तरह पालना शुरू कर दिया।
पति के जाने के बाद बच्चे और नेवले दोनों को घर पर अकेला छोड़कर ब्राह्मण की पत्नी अक्सर काम पर निकल जाती थी।
इस दौरान बच्चे का पूरा ख्याल रखती थी। दोनों के बीच अपार स्नेह देखकर देव कन्या बहुत खुश हुई।
एक दिन अचानक ब्राह्मण की पत्नी के मन में यह विचार आया कि यह नेवला मेरे बच्चे को नुकसान न पहुँचाए।
आखिर यह एक जानवर है और किसी जानवर की बुद्धि पर कोई भरोसा नहीं कर सकता।
समय बीतता गया और नेवले और ब्राह्मण के बच्चे के बीच प्रेम गहराता गया।
एक बार की बात है की ब्राह्मण अपने किसी जरूरी काम से गाँव से बाहर जा रहा था।
ब्राह्मण के घर से बाहर जाने के बाद उसकी पत्नी देव कन्या को अनायास ही एक काम याद आया।
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और जल्दी जल्दी में देवकन्या अपने पुत्र को अकेला ही घर पर छोड़ कर चली गयी।
देवकन्या के घर से जाने के बाद एक साप अपने बिल से निकलकर सीधा ब्राह्मण के घर में अंदर चला गया।
इधर, ब्राह्मण देवदत्त का बच्चा आराम से सो रहा था। उधर, सांप उस बच्चे की ओर तेजी से बढ़ने लगा।
पास में एक नेवला भी था। नेवले ने जैसे ही सांप को देखा वह सतर्क हो गया।
नेवला तेजी से सांप की ओर दौड़ा और दोनों के बीच लंबी लड़ाई हुई।
इस लम्बी लड़ाई के बाद ही नेवले ने अंत में साँप को मार कर ब्राह्मण के पुत्र की उस साँप से रक्षा की ।
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और नेवला घर के एक कोने में जाकर बैठ गया इस बीच देवकन्या घर लौट आई।
उसने जैसे ही नेवले का चेहरा देखा, वह डर गई। नेवले का मुंह सांप के खून से लथपथ था,
लेकिन इस बात से अनजान देव कन्या ने अपने मन में कुछ और ही सोचा।
वह गुस्से से कांपने लगी। उसने सोचा कि नेवले ने उसके प्यारे बेटे को मार डाला है।
परन्तु देव कन्या ने बिना कुछ सोचे समझे नेवले को मारने के बाद अपने बच्चे को देखने के लिए घर के अंदर तेजी से भागा।
वहां बच्चा हंस रहा था और खिलौनों से खेल रहा था।
इस दौरान उसकी नजर पास में पड़े सांप पर गई।
सांप को देखकर देव कन्या को बहुत दुख हुआ। वह नेवले से भी बहुत प्यार करती थी,
लेकिन गुस्से और अपने बच्चे से मोह में उसने नेवले को मार डाला
अब तो देवकन्या को अपने किये बहुत ही पश्चाताप हुआ
और अपने पश्चाताप के कारन देवकन्या की आँखों से आँसू बहने लगे
वह रोने लगी उसी क्षण ब्राह्मण अपने घर आया
और पत्नी को रोते देखकर वह तेजी से घर में आया
उसने अपनी पत्नी से पूछा की तुम क्यों रो रही हो ” उसने सारी कहानी अपने पति को सुनाई।
नेवले की मृत्यु के बारे में सुनकर ब्राह्मण देवदत्त बहुत दुखी हुए। ब्राह्मण ने उदास मन से कहा,
“आपको बच्चे को घर में अकेला छोड़ने और अविश्वास के लिए दंडित किया गया है।
” Moral of the story -कहानी से सबक:
क्रोध में आकर बिना सोचे समझे कोई भी काम नहीं करना चाहिए। साथ ही शक की वजह से कभी भी भरोसे के धागे को नहीं तोड़ना चाहिए।