दो मछलियों और एक मेंढक की कहानी | Two Fishes And A Frog Story In Hindi

Panchtantr ki kahani: A Frog And Fish  Story in hindi

एक बार की बात है एक तालाब में दो मछलियाँ और एक मेंढक एक साथ रहते थे।

एक मछली का नाम शतबुद्धि और दूसरी का नाम सहस्त्रबुद्धि था। वहीं उस मेंढक का नाम एकबुद्धि था।

मछली को अपनी बुद्धि पर बहुत गर्व था, लेकिन मेंढक को अपनी बुद्धि पर कभी गर्व नहीं था।

फिर भी तीनों बहुत अच्छे दोस्त थे। तीनों साथ-साथ तालाब में घूमते थे और हमेशा साथ रहते थे।

जब भी कोई समस्या आती थी तो तीनों मिलकर उसका समाधान करते थे।

एक दिन मछुआरे नदी के किनारे से जा रहे थे। उसने देखा कि तालाब मछलियों से भरा हुआ है।

मछुआरों ने कहा, “हम कल सुबह यहां आएंगे और ढेर सारी मछलियां ले जाएंगे।

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” मेंढक ने मछुआरे की सारी बातें सुन ली थीं। वह तालाब में मौजूद सभी लोगों की जान बचाने के लिए अपने दोस्तों के पास गया।

उन्होंने शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि को मछुआरों के बारे में सब कुछ बताया।

“उसे अपनी जान बचाने के लिए कुछ करना चाहिए,” एक-बुद्धिमान मेंढक ने कहा।

दोनों मछलियाँ कहने लगीं – “मछुआरों के डर से हम अपने पूर्वजों का स्थान नहीं छोड़ सकते।

” दोनों ने फिर कहा – “हमें डरने की जरूरत नहीं है, हमारे पास इतनी बुद्धि है कि हम अपना बचाव कर सकें।

” वहीं एकबुद्धि मेंढक ने कहा- ”मैं पास के एक तालाब के बारे में जानता हूं, जो इस तालाब से जुड़ा है.”

उसने तालाब के अन्य प्राणियों को भी साथ चलने के लिए कहा, लेकिन कोई भी एकबुद्धि मेंढक के साथ जाने को तैयार नहीं था

क्योंकि शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि में सभी को विश्वास था कि वह उनकी जान बचाएगी।

मेंढक ने कहा – “तुम सब मेरे साथ आओ। मछुआरे सुबह तक आ जाएंगे।

” इस पर सहस्त्रबुद्धि ने कहा – “वह तालाब में छिपने की जगह जानता है।

” शतबुद्धि ने भी कहा – “वह तालाब में छिपने की जगह भी जानता है।

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” इस पर मेंढक ने कहा- ”मछुआरों के पास बड़ा जाल है।

आप उनसे बच नहीं सकते”, लेकिन मछली को अपनी बुद्धि पर बहुत गर्व था।

उसने मेंढक की एक न सुनी, लेकिन उस रात मेंढक अपनी पत्नी के साथ दूसरे तालाब में चला गया।

शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने एकबुद्धि का मजाक उड़ाया। अब अगली सुबह मछुआरे अपना जाल लेकर वहां आ गए।

उसने तालाब में जाल डाला। तालाब के सभी जीव-जंतु जान बचाने के लिए भागने लगे।

लेकिन मछुआरों के पास एक बड़ा जाल था, जिससे कोई बच नहीं सका। कई मछलियां जाल में फंस गईं।

शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने भी भागने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी मछुआरों ने पकड़ लिया।

जब तक उन्हें तालाब से बाहर लाया गया तब तक दोनों की मौत हो चुकी थी।

शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि आकार में सबसे बड़े थे, इसलिए मछुआरों ने उन्हें रखा।

शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि को अपने कंधों पर ले जाते हुए उन्होंने शेष मछलियों को एक टोकरी में रख दिया।

जब वह दूसरे तालाब के सामने पहुँचा तो बुद्धि के मेंढक की दृष्टि उन दोनों पर पड़ी।

अपने दोस्तों की यह हालत देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ।

उसने अपनी पत्नी से कहा कि अगर दोनों ने मेरी बात मानी होती तो आज जिंदा होते।

कहानी से मिली सीख:

अपनी बुद्धि पर कभी अभिमान मत करो। यह अभिमान एक दिन घातक सिद्ध हो सकता है।